Friday 28 June 2013

घनचक्कर बनते दर्शक!

Emraan Hashmi & Vidya Balan at Ghanchakkar On The Sets
यूटीवी के सिद्धार्थ रॉय कपूर और रोनी स्क्रूवाला की जोड़ी लगता है इस बार चूक गयी। राजकुमार गुप्ता ने इनके लिए आमिर और नो वन किल्ड जेसिका जैसी बढ़िया फिल्में बनाई थी। नो वन किल्ड जेसिका को तो बॉक्स ऑफिस सक्सेस भी मिली तथा प्रशंसा और पुरुस्कार भी । इसलिए, परवेज़ शेख के साथ खुद राजकुमार गुप्ता की लिखी कथा पटकथा पर फिल्म बनाने के लिए यूटीवी की इस जोड़ी का राजी हो जाना, स्वाभाविक भी था। घनचक्कर के लिए इमरान  हाशमी विद्या बालन के साथ लिए गए थे। इस जोड़ी ने द डर्टी पिक्चर जैसी फिल्म दी थी। फिल्म में अमित त्रिवेदी की धुनों पर गीत अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे थे। फिल्म से इतने बड़े नाम जुड़े होने से दर्शकों की फिल्म से उम्मीदें भी बढ़ना स्वाभाविक था। पर यह नहीं कहा जा सकता कि घनचक्कर दर्शकों की ज़्यादा उम्मीदों का शिकार हो गयी। इस फिल्म में कमियों और खामियों का विश्व रेकॉर्ड बनाने की क्षमता है।
फिल्म की कहानी एक बैंक से 35 करोड़ की डकैती डालने की है। पंडित और हुसैन, संजय आत्रे को डरा धमका और लालच दे कर इस डकैती में तिजोरी खोलने के लिए राजी करते है। वह इसमे सफल भी हो जाते हैं। डकैती का पैसा अटैची में रखने के बाद पंडित इस पैसे को तीन महीने तक अपने पास ही रखने के लिए आत्रे से कहता है। अब होता क्या है कि संजय का आक्सीडेंट हो जाता है और वह भूलने की बीमारी का शिकार हो जाता है। सुनने में यह कहानी उम्मीदें जगाने वाली काफी उम्दा लगती है। पहली दो तीन रील तक यह उम्मीद कायम भी रहती है। लेकिन, इसके बाद फिल्म राजकुमार गुप्ता के हाथों से जो फिसलती है तो फिर फिसलती ही चली जाती है। अनावश्यक और बेसिर पैर की घटनाएँ घटती ही रहती हैं। संजय और उसकी पत्नी नीतू तथा पंडित और हुसैन के चार चरित्रों के साथ शुरू यह कहानी पात्रों के  बढ़ने के साथ हल्की पड़ती चली जाती है। कभी ऐसा लगता है कि कोई चौकाने वाला बढ़िया ट्विस्ट आने वाला है। मगर जो कुछ होता है वह फिल्म को कमजोर कर देता है। फिल्म के क्लाइमैक्स का खून खराबा भी अस्वाभाविक है।
सच कहा जाए तो एक अच्छी कहानी पर बढ़िया पटकथा लिखने में राजकुमार गुप्ता और शेख की जोड़ी बिल्कुल चूक गयी। शुरुआत करने के साथ ही वह बिखरते चले गए। इमरान हाशमी का संजय आत्रे का कैरक्टर प्रमुख है, पर उसे भी डिवैलप नहीं किया गया है कि वह तिजोरी खोलने के मामले में इतना मशहूर कैसे हो गया कि उसके पास बड़ी डकैती के प्रस्ताव आने लगे। पंडित और हुसैन किसी लिहाज से डकैत नहीं लगते। बल्कि, वह कमेडियन ज़्यादा महसूस होते हैं। दरअसल उनके कैरक्टर ही ऐसे लिखे गए हैं। राजकुमार गुप्ता न तो रफ्तार रख पाये, न थ्रिल का एहसास करा पाये। ऐसी फिल्मों में संगीत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन, घनचक्कर में वह भी बेजान है।
दर्शक घनचक्कर को देखने अभिनेत्री विद्या बालन के चक्कर में गए थे। लेकिन, विद्या बालन को देख कर झल्लाहट पैदा होती हैं। वह फ़ैशन परास्त पंजाबन के बजाय किसी सर्कस की जोकर जैसी लगती है। वह इमरान हाशमी जैसे अभिनेता के सामने भी नहीं उभर पातीं। उन्होने अजीबो गरीब कपड़े पहने हैं। लेकिन, इनमे वह सेक्सी लगने के बजाय बेढंगी लगती हैं। घनचक्कर विद्या बालन के सबसे घटिया फिल्म कही जाएगी। विद्या के मुकाबले इमरान हाशमी का काम अच्छा है। डकैत बने नमित दासऔर राजेश शर्मा ने अपना काम अच्छी तरह से किया है। लेकिन, वह दर्शकों को हंसा पाने में नाकाम रहे हैं।
घनचक्कर को देख कर दर्शकों को चक्कर आ सकते हैं। वह खुद को ठगा महसूस कर सकते हैं । लेकिन, यह उनकी गलती है कि वह घनचक्कर को विद्या बालन की फिल्म के चक्कर में देखने जाते हैं। यह विद्या का Himalayan blonder है कि उन्होने घनचक्कर को अपने पति के चक्कर में साइन कर लिया। इससे विद्या के कैरियर को नुकसान ही होगा। दर्शक घनचक्कर को देखना चाहे तो देखें। लेकिन, अगर नहीं देखना चाहें तो बहुत बेहतर होगा।

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