Saturday 13 July 2013

बॉलीवुड हीरो के 'प्राण'

तिरानबे साल पहले 12 फरवरी को जन्मे प्राण कृष्ण सिकंद का 12 जुलाई को देहांत हो गया. आज अख़बारों की सुर्खियाँ हैं कि हिंदी फिल्मों के मशहूर विलेन प्राण का निधन हो गया . एक बेजोड़ अभिनेता का यह कैसा  मूल्यांकन ? वह किस कोण से विलेन थे. इतने सुन्दर चहरे और शानदार व्यक्तित्व वाला केवल विलेन कैसे? बहुत कम लोग जानते होंगे कि शिमला में नाटक के दिनों में मदन पूरी की रामलीला में प्राण ने सीता का रोल किया था. फिल्मों में भी वह अपने अभिनय के नए कीर्तिमान स्थापित करते रहे. उन्होंने विलीन और करैक्टर रोल्स को एक जैसी महारत से किया. शहीद का डाकू केहर सिंह किधर से विलेन था, जो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के लिए उपवास रखता है, आंसू बहता है. उपकार का मलंग चाचा, जो हीरो को बचने में अपनी जान दे देता. क्या रियल लाइफ में ऐसा चाचा विलेन कहलाता  है? नहीं ना! तब प्राण का मलंग चाचा विलेन कैसे हो गया? क्या इसलिए कि इस किरदार को करने वाला अभिनेता सैकड़ों हिंदी फिल्मों में खलनायिकी के तेवर दिखा चुका था. यह तो एक  अच्छे अभिनेता की निशानी है कि इतना खूबसूरत आदमी हिंदी फिल्मों के विलेन को तेवर दे रहा था. लेकिन प्राण ने तो खानदान पिलपिली साहेब और हलाकू जैसी फिल्मों का हीरो बनाने के बाद जब खुद का चेहरा देखा तो उन्हें लगा कि वह हीरो के रूप में इतने खूबसूरत नहीं। वह तो हिंदी फिल्मों के विलेन को नए नए चहरे देना चाहते थे, नई ऊँचाइयाँ देना चाहते थे ताकि वह हर हिंदी फिल्म की ज़रुरत बन जाये. जिद्दी में देव आनंद के अपोजिट विलेन बन कर प्राण ने न केवल देव आनंद को हिट बनाया, फिल्म हिट हुई, बल्कि खुद प्राण भी बतौर विलेन सुपर डुपेर हिट हो गये. एक समय ऐसा था जब प्राण के लिए ख़ास तौर पर रोल  रखे और लिखाये जाते थे. फिल्म की कास्टिंग में ...एंड अबोव आल प्राण।
प्राण कितने अच्छे अभिनेता थे इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बिना लाउड हुए अपने चरित्र को इतना दुष्ट बनाया कि विश्वजीत और जॉय मुख़र्जी जैसे मामूली अभिनय करने वाले बड़े हीरो बन गये. जब भी वह परदे पर आये दर्शक गालियों और तालियों से उनका स्वागत करते. क्या अभी तक कोई ऐसा विलेन हुआ है जिसे गालियों के साथ तालियाँ  भी मिले. लेकिन, रियल लाइफ में वह लोगों के कितने बड़े हीरो थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 1963 में रिलीज़ फिल्म फिर वही दिल लाया हूँ का क्लाइमेक्स पहलगाम में फिल्माया जा रहा था तो फिल्म के डायरेक्टर नासिर हुसैन ने रियलिटी के लिए स्थानीय लोगों को भीड़ के रूप में जूता लिया था. लेकिन, हुआ यह कि जब प्राण जॉय मुख़र्जी को मरते तो भीड़ तालियाँ बजाने लगती और उन्हें चीयर करने लगती. इस पर फिल्म के क्रू मेम्बर्स को भीड़ को समझाना पड़ा कि हीरो प्राण नहीं जॉय मुख़र्जी हैं, इसलिए जॉय के प्राण को मारने पर तालियाँ बजायी जाये। ऐसा था प्राण का हीरो विलेन। प्राण ही अकेले अभिनेता थे जिन्हें अमिताभ से ज्यादा फीस दी गयी. वह भी डॉन के दिनों में।
प्राण ने अपने जीवन में कई देशी विदेशी अवार्ड्स जीते। वह पद्मभूषण थे और दादा साहेब फालके अवार्ड्स विनर भी. उन्हें चार फिल्मफेयर अवार्ड्स भी मिले.
प्राण साहब बॉलीवुड के प्राण थे, हीरो के हीरो प्राण थे. उनके जाने के बाद भी हिंदी फिल्मों के दर्शक उन्हें अभिनय के स्कूल के रूप में याद करते रहेंगे। श्रद्धांजलि।





 

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