Monday 27 January 2014

बॉक्स ऑफिस पर नहीं हुई सलमान खान की जय !


                    कम से कम ट्रेड पंडितों को बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि सलमान खान की इस मोस्ट hyped  फ़िल्म  जय हो को इतनी कमज़ोर ओपनिंग मिलेगी। लेकिन, फ़िल्म के ट्रेलर के चावलों से पूरी खिचड़ी का मज़ा बदमज़ा जान लेने वाला दर्शक चख चूका था कि जय हो केवल सलमान खान को ध्यान में रख कर बनायी गयी एक बेहद कमज़ोर पटकथा, निर्देशन और संवादों वाली फ़िल्म है. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले इस फ़िल्म का संगीत भी बेजान साबित हो रहा था. हालाँकि सलमान खान ने अपनी फ़िल्म को ज़बरदस्त प्री रिलीज़ पब्लिसिटी दिलाने की भरपूर कोशिश की. वह मुम्बई की सडकों पर आम आदमी के लिए चैरिटी करते घूमे। उन्होंने चैनलों पर आम आदमी की बात की. लेकिन, यह भूल गए कि पब्लिसिटी कमज़ोर फ़िल्म को सहारा नहीं दे पाती।
                    नतीज़ा यह हुआ कि जय हो पहले दिन केवल १७. ५५ करोड़ ही कमा सकी. यह कलेक्शन २०१२ में रिलीज़ सलमान खान की फ़िल्म एक था टाइगर के ३० करोड़ के कलेक्शन की तुलना में काफी कम था. दूसरे दिन फ़िल्म का बॉक्स ऑफिस  कलेक्शन  गिर कर  १६ करोड़ रह गया. वीकेंड के तीसरे दिन सन्डे भी था और रिपब्लिक डे भी. इसलिए फ़िल्म को भीड़ खींचनी ही थी।  जय हो ने तीसरे दिन २५ करोड़ की कमाई की और कुल वीकेंड कलेक्शन ५८.५५ करोड़ का हुआ। इसके साथ साथ ही सलमान खान की जिस फ़िल्म से बॉक्स ऑफिस पर  तीन सौ करोड़ कमा लेने और वीकेंड में पहला सैकड़ा मार लेने की उम्मीद की जा  रही थी, उस फ़िल्म के सन्दर्भ में कब तक सौ करोड़ कमा लेती है का अनुमान लगाया जाने लगा.
                       जय हो में तीन सौ क्या दो सौ करोड़ का कलेक्शन करने की दम नहीं है. यह फ़िल्म हर प्रकार से काफी कमज़ोर फ़िल्म है. निर्देशक सोहैल खान तो जैसे भैया सलमान खान को लेकर ही निहाल  थे. उन्होंने सलमान खान को हर फ्रेम में वैसे ही खड़ा कर दिया, जैसे वह अमूमन अपने इवेंट्स को अटेंड करते समय खड़े होते हैं।  सोहैब ने सलमान खान के करैक्टर के ज़रिये हर आदमी को तीन लोगों का भला करने का जो सन्देश देना चाहा था, उसे वह अपनी फ़िल्म के चरित्रों तक ही नहीं  पहुंचा सके. फ़िल्म के लेखक दिलीप शुक्ल ने तेलुगु फ़िल्म स्टॅलिन का खाका होने के बावज़ूद बेहद कमज़ोर फ़िल्म लिखी। यहाँ तक कि उन्होंने सलमान खान के करैक्टर जय अग्निहोत्री को तक मज़बूत और प्रभावशाली गढ़ने की ज़रुरत नहीं समझी। उन्होंने, तब्बू,  नादिरा बब्बर, सुनील शेट्टी, सना खान, डेज़ी शाह, गेनेलिअ डिसूज़ा जैसे कलाकारों के ज़रिये छोटे बड़े तीन दर्जन चरित्र जुटा ज़रूर लिए, परन्तु उन्हें एक  कहानी में नहीं जुटा पाये। सभी एक्टर एक दूसरे से तू चल मैं फीस लेकर आया कहते लग रहे थे. ऎसी कहानी वाली फ़िल्में दर्शकों को तनिक भी नहीं जोड़ पाती। उस पर सलमान खान का बेहद साधारण अभिनय और भाव प्रदर्शन कोढ़ में खाज कि तरह था. फ़िल्म के लिए इतने घटिया संगीत की उम्मीद कम से कम साजिद वाजिद से तो बिलकुल नहीं की जाती थी. अनिल अरासु, देव जज और  रवि वर्मा के स्टंट सीन ही अच्छे बन पड़े हैं.
                        जय हो के बाद  बॉलीवुड शायद अगले दो तीन खानों की फिल्मों को दर्शकों द्वारा ठुकराए जाने का इंतज़ार करेगा। हो  सकता है कि उसके बाद वह खानों या किसी स्टार पर भरोसा करने के बजाय कहानी और स्क्रिप्ट पर भरोसा करेगा तथा अपने नए स्टारों की तलाश भी गम्भीरता से करेगा। तब तक खानों कि जय हो !  

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