उत्तर प्रदेश में किसी फिल्म को मनोरंजन कर से मुक्त करने की नीति अज़ब है.
अमूमन, कितना भी जोर लगा दिया जाए, कोई भी फिल्म २ हफ्ता चलने के बाद ही कर
मुक्त हो पाती है. कर मुक्ति का आदेश पूरे प्रदेश में एक बार १५ प्रिंट्स
के लिए ही लागू रहता है. इस शासनादेश को फिल्म के सम्बंधित वितरक को भेज
दिया जाता है. यह वितरक अपने स्तर पर तय करता है कि किस किस शहर में किस
किस स्क्रीन पर फिल्म टैक्स फ्री दिखायी जाएगी. वह इस सूचना को सम्बंधित
जनपद के मनोरंजन कर कार्यालय भेज देता है. मनोरंजन कार्यालय
तब उन सिनेमाघरों को सूचित करता है. यह एक लम्बी, थकाऊ और उबाऊ प्रक्रिया
है. पहले होता यह था कि सिनेमा के प्रदर्शक ही जल्दी टैक्स फ्री कराने के
लिए लोकल कोशिश करते थे. ख़ास तौर पर लखनऊ के प्रदर्शक. क्यूंकि, शासनादेश
हाथ में आते ही वह टैक्स फ्री का बोर्ड अपने सिनेमाघरों के बाहर टांग सकते
थे. अब सब कुछ वितरक पर निर्भर है तो प्रदर्शक इत्मीनान से हैं. मर्दानगी
को लखनऊ में तीसरे हफ्ते में, दो सिनेमाघरों के बाद टैक्स फ्री का टैग
मिला. यही हाल मैरी कॉम का भी होने जा रहा है. इसका शासनादेश भी दूसरे या
तीसरे हफ्ते में वितरक के हाथ आएगा. वितरक भी आराम से रहता है कि अगर पहले
हफ्ते में ठीक चल गयी तो दूसरे या तीसरे हफ्ते में टैक्स फ्री टैग के साथ
छलावा देंगे. यहाँ दिलचस्प तथ्य यह है कि मर्दानी को लखनऊ में साहू के
अलावा मल्टीप्लेक्स में भी टैक्स फ्री का पत्र दे दिया गया है. क्या,
मल्टीप्लेक्स में देखा जा सकेगा कि मर्दानी किसी दूसरी ऑडी में टैक्स फ्री
नहीं दिखायी जा रही. अब अगर इतने ज़्यादा प्रिंट पर लखनऊ में ही छूट दे दी
गयी है तो अन्य जिलों के दर्शक इस फिल्म को पूरे पैसे में देखेंगे. या शायद
देख भी न पाएं.
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