Saturday 1 November 2014

'सुपर' तो नहीं ही है यह 'नानी'

इंद्र कुमार ने कभी दिल, बेटा, राजा, इश्क़, मन और रिश्ते जैसी मनोरंजक और परिवार से जुडी फिल्मों का निर्माण किया था।  यह फ़िल्में हिट हुई. सभी श्रेणी के दर्शकों द्वारा पसंद की गयी।  फिर वह मस्ती पर उतर  आये।  मस्ती जैसे सेक्स कॉमेडी बना डाली।  फिल्म हिट हो गयी तो प्यारे मोहन, धमाल, डबल धमाल और ग्रैंड मस्ती जैसी फ़िल्में बना डालीं।  इसके साथ ही परिवार उनका सरोकार  छूटता चला गया।  अब जबकि वह ग्रैंड मस्ती जैसी सौ करोडिया सेक्स कॉमेडी फिल्म के बाद सुपर  नानी से परदे पर रेखा को लेकर आये हैं तो लगता है जैसे वह फिल्म बनाना भूल गए हैं. उन्होंने रेखा जैसी बहुमुखी प्रतिभा वाली अभिनेत्री को नानी बनाया , लेकिन कहानी घिसी पिटी ले बैठे।  रेखा नानी बनी है, जिसका उसके घर में उसका पति और बच्चे अपमान और उपेक्षा करते हैं।  तभी आता है नाती शरमन जोशी।  वह यह सब देख कर अपनी नानी को सुपर नानी बनाने की कोशिश करता है।
जब तक रेखा नानी होती हैं, आकर्षित करती हैं. वह बेहतरीन अभिनय करती थीं , कर सकती हैं और आगे भी  लेंगी, फिल्म से साबित करती हैं।  लेकिन, जैसे ही वह सुपर नानी का चोला पहनती हैं, बिलकुल बेजान हो जाती हैं. यह इंद्र कुमार की असफलता है कि  वह पूरी फिल्म में रेखा की उपयोगिता नहीं कर सके।  इंद्र कुमार का रेखा को मॉडल बना कर सुपर नानी बनाने का विचार ही, अस्वाभाविक है।  वह किसी दूसरे एंगल से रेखा को सुपर नानी साबित कर सकते थे।  जैसे वह फिल्म में रेखा के बेटे से उधार लेनी आये गुंडे खुद के लिए रेखा की ममता देख कर वापस चले जाते  हैं.
फिल्म को इंद्र कुमार के लिए नहीं रेखा और शरमन जोशी की जोड़ी के कारण देखा जा सकता है।  यह जोड़ी जब भी परदे  पर आती  है,  छा  जाती है।  शरमन जोशी बेहद सजीव अभिनय करते हैं।  पता नहीं क्यों फिल्मकार उनका उपयोग घटिया कॉमेडी करवाने के लिए ही क्यों करते हैं।  इंद्र कुमार की बिटिया श्वेता के 'इंद्र कुमार की बिटिया' टैग से उबरने की जुगत फिल्म में नज़र नहीं आती।  रणधीर कपूर को न पहले एक्टिंग आती थी, न इस फिल्म में वह कुछ कर पाये हैं।  अनुपम खेर ने यह फिल्म निश्चित ही पैसों के लिए ही की होगी।  बाकी, दूसरों को जिक्र करने से कोई फायदा नहीं है।

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