Monday 26 January 2015

दर्शकों को थ्रिलिंग मज़ा देगा अक्षय कुमार का 'बेबी'


अक्षय कुमार ने 'बेबी' फिल्म की रिलीज़ से पहले ही कह दिया था कि यह फिल्म पाकिस्तान के विरुद्ध नहीं है।  इसके बावजूद 'पीके' को हाथों हाथ लेने वाले पाकिस्तान ने 'बेबी' को अपने देश में रिलीज़ नहीं होने दिया।  'बेबी' में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया है।  लेकिन, सन्देश साफ़ है।  सीमा पार से बड़े आतंकवादी संगठन भारत पर निगाहें गड़ाए हुए हैं। भारत के शासक ज़ुबानी जमा खर्च करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे।  ऐसे में, जबकि फिल्म में हफ़ीज़ सईद की दाढ़ी वाला आतंकवादी 'बेबी' में दिखाया गया है, पाकिस्तान फिल्म को कैसे  होने दे सकता था। अक्षय कुमार की गणतंत्र दिवस वीकेंड में रिलीज़ हुई फिल्म 'बेबी' एक अच्छी देशभक्तिपूर्ण थ्रिलर फिल्म है।  अजय सिंह राजपूत और उसकी टीम बेबी विदेश में भारत पर घात लगा कर बैठे आतंकवादियों का सफाया करती रहती है।  वह इन आतंकियों को विदेश में घुस कर मारने में कोताही नहीं बरतती।  फिल्म इस मायने में बड़ी अच्छी है कि यह फिल्म अंडरकवर एजेंट की स्थिति, राज नेताओं का दोगलापन और मंत्रालयों के स्टाफ में शहीदों के प्रति अवमानना दर्शाती है। नीरज पाण्डेय ने अपनी थ्रिलर फिल्म का एक एक फ्रेम बहुत खूब लिखा और फिल्माया है।  'बेबी' १५९ मिनट लम्बी है, लेकिन एक सेकंड को भी भटकती नहीं।  दर्शकों में अगले फ्रेम  को देखने की उत्सुकता बनी रहती है। फिल्म की शूटिंग काठमांडो, अबु धाबी और इस्तांबुल में होने के कारण फिल्म में वास्तविकता बनी रहती है। मुंबई में एक आतंकवादीयों  के मददगार और मुसलमानों के नेता को उसके मोहल्ले में घेरने वाला दृश्य थ्रिल पैदा करता है।  नीरज पाण्डेय ने अक्षय कुमार  के करैक्टर के ज़रिये फिल्म को विवादित होने से बचा लिया है।  मौलाना रशीद रहमान की अपने समर्थकों के सामने तकरीर का दृश्य भी बढ़िया बना है।  रहमान को अबु धाबी से भारत लाने का सीक्वेंस रोमांचक है। गृह मंत्री के पीए के मुंह पर अक्षय का तमाचा तालियां बटोर ले जाता है।
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'बेबी' नीरज पाण्डेय और अक्षय कुमार की जोड़ी की है।  नीरज पाण्डेय ने अक्षय कुमार के चरित्र को ख़ास तरजीह दी है। अक्षय कुमार कहीं से भी बॉलीवुड  के सुपर स्टार नहीं लगते।  जहाँ अन्य बॉलीवुड सितारों की फ़िल्में उनकी मैंनेरिस्म पर भरोसा करती हैं, अक्षय कुमार की फ़िल्में उनके चरित्र पर भरोसा करती हैं।  स्पेशल २६ और अब बेबी में अक्षय कुमार यह साबित करते हैं कि अगर कंटेंट चाहिए तो अक्षय  कुमार की फिल्म देखों।  बेबी में अक्षय कुमार के अलावा डैनी डैंग्जोप्पा का फ़िरोज़ अली खान का चरित्र लेखक की चतुराई दर्शाने वाला है।  इस चरित्र के कारण ही नीरज पाण्डेय को मुसलमानों को पाक साफ़ बताने के लिए नाहक भाषणबाज़ी नहीं करनी पड़ी ? डैनी ने फ़िरोज़ के करैक्टर को सहजता से किया है।  फिल्म में अनुपम खेर कुछ ख़ास करते नज़र नहीं आते।  फिल्म में राणा डग्गुबाती और तापसी पन्नू के चरित्र साउथ की ऑडियंस को आकर्षित करने के लिए क्रिएट किये गए लगते हैं। पाकिस्तान के मिकाल ज़ुल्फ़िकार और रशीद नाज़ अपने अपने करैक्टर के साथ न्याय करते हैं। मधुरिमा तुली के लिए बेबी एक मौका थी, जिसे उन्होंने जाने नहीं दिया।  केके मेनन और सुशांत सिंह कुछ ख़ास नहीं।

फिल्म में नाच गीत नहीं रख  कर,रफ़्तार को रुकने नहीं दिया गया है। सुदीप चटर्जी का कैमरा लॉन्ग शॉट और क्लोज अप शॉट के ज़रिये दृश्यों पर पकड़ बनाये रखता है। श्री नारायण सिंह की कैंची का कमाल ही है कि १५९ मिनट की फिल्म भी पकड़ बनाये रखती है।  विक्की सिडाना ने चरित्रों के अनुरूप कलाकारों को चुना है।  विज़ुअल इफेक्ट्स और साउंड इफेक्ट्स का इस फिल्म में ख़ास महत्त्व था।  इस लिए इस डिपार्टमेंट की पूरी टीम बधाई के काबिल है। स्टंट्स में अब्बास अली मुग़ल का ह्यूगो बरिल्लेर और सायरिल रफ्फैल्ली ने बढ़िया साथ दिया है।
तो गणतंत्र दिवस है.… झंडा फहराईये और फिर निकल जाइये निकट के सिनेमाघर में बेबी देखने।
 
 

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