कन्नड़ फिल्मों के मशहूर निर्देशक गीतप्रिय का ८४ साल की उम्र में निधन हो गया। उनकी पहली निर्देशित कन्नड़ फिल्म 'मन्निना मागा' को श्रेष्ठ कन्नड़ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। नारी प्रधान फ़िल्में बनाने वाले गीतप्रिय के बारे में जानना दिलचस्प होगा। कन्नड़ फिल्मों से शोहरत पाने वाले गीतप्रिय वास्तव में मराठी थे। उनका असल नाम लक्षमण राव मोहिते था। उनके पिता मैसूर राज्य की सेना में थे। लक्षमण राव ने कुछ समय तक नाटकों के लिए काम किया। उन्होंने १९५४ में बतौर कन्नड़ फिल्म गीतकार अपना करियर फिल्म श्री राम पूजा के गीत लिख कर किया। फिर वह मद्रास (चेन्नई) चले गए। वहां उनका करियर बतौर गीतकार और संवाद लेखक खूब फूला फला। उन्होंने अपने करियर में कोई ४० फिल्मों का निर्देशन किया तथा कन्नड़ फिल्मों के लिए २५० गीत लिखे। मोहम्मद रफ़ी का गाया इकलौता कन्नड़ गीत नीनेल्ली नादेवे दूरा उन्ही का लिखा हुआ था। उन्होंने दो हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया। पहली फिल्म जंगल की हसीना १९६९ में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में युसूफ खान और शैलश्री की मुख्य भूमिका थी। युसूफ खान के बेटे फ़राज़ खान भी एक्टर थे। फ़राज़ का स्क्रीन डेब्यू फिल्म फरेब (१९९६) से सुमन रंगनाथन और मिलिंद गुणाजी के साथ हुआ था। युसूफ खान ने अमर अकबर अन्थोनी, मुकद्दर का सिकंदर और डिस्को डांसर में भी अभिनय क्या था। अमर अकबर अन्थोनी के करैक्टर ज़बिस्को का चेहरा याद करने पर युसूफ की याद ताज़ा हो सकती है। गीतप्रिय की दूसरी हिंदी फिल्म बच्चों की अनमोल सितारे थी। इसमे मास्टर बाबू, सीमा देव, रमेश देव और राकेश बेदी की मुख्य भूमिका थी। उनकी आखिरी कन्नड़ फिल्म २००३ में रिलीज़ हुई थी। उन्हें कर्नाटक राज्योत्सव अवार्ड और पुट्टण्णा कनगल अवार्ड से सम्मानित किया गया।
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