लगता है, सैफ अली खान, बतौर अभिनेता अपनी नई पारी खेलने की ज़बरदस्त तैयारी कर रहे
हैं। पिछले साल रिलीज़ उनकी दो फिल्मों रंगून और शेफ को, बॉक्स ऑफिस पर असफलता का मुंह देखना पड़ा
था। इसके बावजूद विक्रम की तरह सैफ ने अभिनेता बने रहने का हठ नहीं छोड़ा। वह एक
बार फिर असफलता को पीछे छोड़ कर, अपने करियर को संवारने में जुट गए है। नतीजा सामने हैं। इस साल भी उनकी दो
फ़िल्में रिलीज़ होंगी। लेकिन, यह फिल्मे उनकी इमेज के अनुरूप चॉकलेटी हीरो वाली भूमिकाओं वाली नहीं। दोनों ही फिल्मों में उनकी भूमिकाएं बिलकुल अलग हैं। इन भूमिकाओं से वह
अपनी अभिनय क्षमता का इम्तिहान भी ले सकते हैं। अगले शुक्रवार (१२ जनवरी को) रिलीज़
होने जा रही फिल्म कालकांडी में सैफ एक कैंसर पेशेंट बने हैं, जो अपने बचे खुचे
दिनों में से कुछ पल चुरा कर जीना चाहता है। अब यह बात दीगर है कि यह सब कुछ उसके
लिए एडवेंचरस साबित होता है। फिल्म में मौजूद अमायरा दस्तूर, शोभिता धुलपलिया, ईशा तलवार
और शहनाज़ ट्रेज़रीवाला के महिला चरित्र फिल्म के कथानक को दिलचस्प घुमाव देते हैं और कैंसर पेशेंट की
ज़िन्दगी में उतार चढ़ाव पैदा करते रहते है। ब्लैक कॉमेडी के माहिर, डेल्ही बेली के
निर्देशक अक्षय वर्मा ही कालकांडी का निर्देशन कर रहे है। सैफ की इस साल की दूसरी रिलीज़
होने वाली फिल्म बाज़ार, शेयर मार्किट के उतार चढ़ाव पर अपने आप में अनोखी फिल्म
है। इस फिल्म के नायक रोहन मेहरा हैं, जो मशहूर फिल्म अभिनेता स्वर्गीय विनोद
मेहरा के बेटे हैं। वह फिल्म में शेयर बाज़ार के अच्छे चेहरे बने हैं। रोहन के किरदार के विपरीत है,
सैफ अली खान का किरदार। वह एक दुष्ट और नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्ति बने हैं। निश्चित रूप से सैफ का यह गुजराती किरदार सशक्त और प्रभावशाली है। सैफ अली खान को
ऎसी भूमिका ओमकारा के बाद, पहली बार मिल रही है। सैफ अली खान कहते हैं, “सशक्त और
शक्तिशाली भूमिका करना उत्साहपूर्ण होता है। लेकिन, मैं भूमिकाओं में फर्क नहीं
करता। अगर आप बुरा किरदार भी कर रहे हैं और वह बढ़िया लिखा हुआ है तो दर्शक यह
नहीं देखते कि यह अच्छा है या बुरा किरदार है। वह अभिनेता के काम को देखते हैं और पसंद
करते हैं।"
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