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Tuesday 14 February 2023

आज जन्मी थी Venus of Indian Cinema Madhubala



‘वीनस ऑफ इंडियन सिनेमा' और 'द ब्यूटी ऑफ ट्रेजेडी’ के उपनामों से संबोधित मधुबाला का आज जन्मदिन है. प्यार के उत्सव के दिन 1933 में जन्मी मुमताज़ जहाँ बेगम देहलवी को मधुबाला के नाम से अपने परिवार की आर्थिक सहायता करने के लिए 9 साल की उम्र में कैमरा के सामने उतरना पडा । वह एक ऐसी अभिनेत्री थी, जो बहुत छोटे फ़िल्मी जीवन के बाद भी प्रसिद्धि के शीर्ष पर पहुंची. उन्होंने ७० फिल्मों में अभिनय किया.




यह भारतीय सिनेमा की फर्स्ट लेडी फिल्म निर्माता, अभिनेत्री और निर्देशक देविका रानी थीं, जिन्होंने युवा मताज़ जहाँ बेगम में असीमित अभिनय क्षमता देखी. उन्होंने ही मधुबाला को परदे का नाम दिया । मधुबाला ने १९४७ की फिल्म नील कमल में राज कपूर के साथ अपनी पहली मुख्य भूमिका निभाई, इस फिल्म में उनका मुमताज के नाम से अंतिम परिचय कराया गया था.





मधुबाला ने 36 साल के जीवन काल में महल, अमर, मिस्टर एंड मिसेज '55, चलती का नाम गाड़ी, हावड़ा ब्रिज, बरसात की रात और मुगल ए आजम सहित कई यादगार फिल्में कीं। देवानंद के साथ शराबी उनकी अंतिम फिल्म थी. ज्वाला को उनकी मृत्यु के दो साल बाद प्रदर्शित हुई थी. पर फिल्म फ्लॉप हुई.




23 फरवरी 1969 को, अपने 36वें जन्मदिन के नौ दिन बाद लम्बी बीमारी से जूझने के बाद, उनका दुखद निधन हो गया. मृत्यु से पहले तक असीम कष्ट झेलने वाली मधुबाला का फिल्मो के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ था. वह फिल्म फ़र्ज़ और इश्क से अपने फिल्म करियर में निर्देशक को जोड़ना चाहती थी. किन्तु मृत्यु ने उनकी इच्छा पूरी नहीं होने दी. उन्हें श्रद्धांजलि.

Tuesday 15 November 2022

वरिष्ठ तेलुगु सुपरस्टार कृष्णा का निधन !

 


तेलुगु फिल्मों के युवा सुपरस्टार महेश बाबू के फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता पिता गट्टामनेनी शिव राम कृष्णामूर्ति का ७९ साल की आयु में हृदयाघात से देहांत हो गया.



वह १९६०, १९७० और १९८० के दशक की तेलुगु फिल्मों के सुपरस्टार कहलाते थे. उन्होंने ३५० से अधिक तेलुगु फिल्मों में अभिनय किया. उनके पद्मालय स्टूडियो से कई हिट हिंदी फिल्मों का निर्माण भी हुआ.



कृष्णा के नाम, दो अभिनेत्रियों विजय निर्मला के साथ ४८ और जया प्रदा के साथ ४७ फिल्में करने का कीर्तिमान लिखा हुआ है.



कृष्णा ने, तेलुगु फिल्मों में कई नई तकनीक और जोनर के साथ फिल्मों का परिचय कराया. काऊबॉय फिल्मों की शुरुआत भी कृष्णा ने की. पहली सिनेमास्कोप फिल्म अल्लूरी सीताराम राजू के निर्माता भी कृष्णा थे. पहली ईस्टमैन कलर फिल्म ईनाडु, पहली ७०एमएम् फिल्म सिंहासन, पहली डीटीएस फिल्म वीर लेवारा से कृष्णा का नाम जुड़ा हुआ था. उन्होंने तेलुगु भाषा की पहली स्पाई फिल्म गुदाचारी ११६ (१९६६) अभिनय करने के बाद जेम्स बांड ७७७ (१९७१), एजेंट गोपी (१९७८), रहस्य गुदाचारी (१९८१) और गुदाचारी ११७ (१९८९) जैसी स्पाई थ्रिलर फिल्मों में भी अभिनय किया.



उन्होंने अपने बेटे महेश बाबु को लेकर छः फिल्मों का निर्देशन किया. उन्होंने कुल १७ फीचर फिल्मों का निर्देशन किया. वह कांग्रेस पार्टी के टिकट से लोकसभा के लिए भी चुने गए.



कृष्णा का आकस्मिक निधन, अभिनेता महेश बाबु के लिए इस साल तीसरा आधात है. इस साल जनवरी में उनके भाई रमेश बाबु और सितम्बर में उनकी माँ इंदिरा देवी का निधन हो गया था. ईश्वर महेश बाबु को इन आघातों को सहने की शक्ति दे. कृष्णा को श्रद्धांजलि.

Sunday 6 February 2022

मेरी आवाज़ ही पहचान है- लता मंगेशकर



चार साल पहले, १६ जनवरी २०१५ की सुबह सुबह सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल हो रही थी  कि लता मंगेशकर नहीं रही। उनकी इस कथित मौत की खबर ने, लता मंगेशकर के प्रशंसकों को सदमे में डाल दिया। वह उनकी खैरख्वाही की जानकारी के लिए अपने अपने स्रोतों से संपर्क करने लगे। सोशल मीडिया पर, शोक संवेदना संदेशों की बाढ़ सी आ गई। खुद लता मंगेशकर के घर पर भी फ़ोन कॉल आने शुरू हो गए। इससे हैरान हो कर लता मंगेशकर के शुभचिंतकों को खुद ट्वीट कर अपनी सलामती से अपने प्रशंसकों को सूचित करना पडा। लेकिन....!



दीनानाथ की सबसे बड़ी बेटी
लता मंगेशकर का जन्म, ब्रिटिश शासन के इंदौर राज्य में इंदौर में २८ सितम्बर १९२९ को हुआ था। वह अपने पिता गायक, नर्तक और अभिनेता दीनानाथ मंगेशकर की दूसरी शादी से उत्पन्न पांच बच्चों में सबसे बड़ी थी। लता मंगेशकर को, पांच साल की उम्र से ही, उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर ने संगीत दीक्षा देनी शुरू कर दी थी। लता ने, इसके अलावा अमान अली खान साहेब और अमानत खान से भी संगीत की शिक्षा ली।



काफी पतली और ऊंची आवाज़ के कारण रिजेक्ट
१९४० के दशक में, लता मंगेशकर ने, पार्श्व गायिकी में भाग्य आजमाने का फैसला किया। कहते हैं कि यह उनका गलत फैसला था। लेकिन, यह लता की मज़बूरी थी। पिता का देहांत हो जाने के बाद, परिवार की जिम्मेदारी किशोरवय की लता के कन्धों पर आ गई। उस समय नूरजहाँ और शमशाद बेगम का ज़माना था। इनकी नाक से निकली आवाज़ के सब दीवाने थे। इसलिए, उस समय कुछ प्रोजेक्ट से इसलिए उन्हें बाहर होने पडा कि उनकी आवाज़ काफी पतली और ऊंची पिच वाली है। उनकी आवाज़ को कर्ण-कटु बताया गया। १९४२ से १९४८ के बीच लता मंगेशकर को फिल्मो में अभिनय करने के लिए विवश होना पड़ा। उन्होंने आठ हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया। उनकी बतौर पार्श्व गायिका पहली फिल्म मराठी भाषा में किती हसाल (१९४२) थी। पर बाद में उनके गाये इस गीत को फिल्म से निकाल दिया गया।



गुलाम हैदर ने दिया ब्रेक
लता मंगेशकर को पहला ब्रेक संगीतकार गुलाम हैदर ने दिया। फिल्म थी मजबूर (१९४८) । अगले ही साल, यानि १९४९ में लता मंगेशकर की चार फ़िल्में महल, दुलारी, बरसात और अंदाज़ रिलीज़ हुई।  महल के गीतों ने लता मंगेशकर की आवाज़ की बदौलत तहलका मचा दिया। उनकी इन चारों फिल्मों में सभी गीत ज़बरदस्त हिट हुए। लता मंगेशकर भारत की स्वर कोकिला के तौर पर हमेशा हमेशा के लिए स्थापित हो गई। हालाँकि, शुरुआत में, नूरजहाँ से प्रभावित लता मंगेशकर ने नूरजहाँ को नक़ल करने की कोशिश की। लेकिन बाद में अपनी शैली में गायन शुरू कर दिया। इसके बाद से, लगातार चालीस साल तक, लता मंगेशकर ने फिल्म इंडस्ट्री में एकछत्र राज्य किया। उनकी आवाज़ के सामने शारदा, वाणी जयराम, सुमन कल्यानपुर, आदि जैसे नाम टिक नहीं सके। इसे लेकर उन पर एकाधिकार स्थापित करने का आरोप भी लगाया गया। १९८० के दशक के बाद, लता मंगेशकर ने गीत गाने कम कर दिए।



सभी समकालीन गायकों के साथ गायन
लता मंगेशकर ने अपने पूरे गायन करियर में, १४ भाषाओं के ३० हजार से ज्यादा गीत गाये हैं। इसके लिए उन्हें इतिहास की सबसे ज्यादा गीत गाने वाली गायिका माना जाता है। यह गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। लता मंगेशकर ने, हर पीढी के पुरुष और स्त्री  गायक-गायिकाओं के साथ यह गीत गाये। उन्होंने १९४० से १९७० के मध्य सुरैया, मोहम्मद रफी, आशा भोसले, उषा मंगेशकर, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, हेमंत कुमार और महेंद्र कपूर के साथ गीत गाये। लता मंगेशकर के पुरुष सह गायकों में १९७६ में मुकेश और १९८० के दशक में पहले १९८० में मोहम्मद रफ़ी की मृत्यु हो गई और उसके बाद, १९८७ में किशोर कुमार भी चल बसे। इसके बाद भी लता मंगेशकर ने शब्बीर कुमार, शैलेन्द्र सिंह, नितिन मुकेश, मनहर उधास, अमित कुमार, मोहम्मद अज़ीज़, विनोद राठौर और एसपी बलासुब्रह्मन्यम के साथ गीत गाये। १९९० के दशक में, पंकज उधास, मोहम्मद अज़ीज़ के अलावा अभिजीत, उदित नारायण, कुमार शानू और सुरेश वाडकर के साथ लता के गाये गीत सुनने को मिले. २००५ और २००६ में लता मंगेशकर का पार्श्व गायन सोनू निगम अरु उदित नारायण के साथ मिलता है। इस दौर में उन्होंने जगजीत सिंह और गुरदास मान के साथ भी गीत गाये।



क्यों सिर्फ एक दिन स्कूल गई ?
क्या आप जानते हैं कि लता मंगेशकर को दुनिया के छः देशों से डॉक्टरेट की डिग्री मिली थी। लेकिन, इन छः विश्वविद्यालयों की डॉक्टर लता मंगेशकर ने सिर्फ एक दिन स्कूल का मुंह देखा था। इसके बाद वह कभी स्कूल नहीं गई। हालाँकि, उन्होंने हिंदी और मराठी के अलावा भी कई भाषों के गीत गाये। क्या आप जानना चाहते हैं कि लता मंगेशकर एक दिन के अलावा स्कूल क्यों नहीं गई !दरअसल, लता मंगेशकर के चार भाई-बहन हैं। इनमे, उनके बाद आशा भोसले एक बहन हैं। लता दीदी आशा भोसले को बहुत प्यार करती थी। इसलिए वह उन्हें हर समय साथ रखती थी। स्कूल में भी वह आशा को साथ ले जाती थी। स्कूल में उन्हें इसके लिए मना किया गया। इसलिए लता मंगेशकर ने अगले दिन ही स्कूल को अलविदा कह दिया।



लता मंगेशकर का सम्मान
लता मंगेशकर ने अपने गायिकी के दौर में कई पुरस्कार और सम्मान पाए। उन्हें, भारत सरकार ने भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया। उन्हें फ्रांस की सरकार ने ऑफिसर ऑफ़ द फ्रेंच लीजन ऑफ़ ऑनर से सम्मानित किया। उन्हें तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। उन्हें, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड ने १५ बार सम्मानित किया। उन्हें अपनी श्रेष्ठ गायिकी के लिए ४ बार फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। ढेरों पुरस्कार जीतने वाली लता मंगेशकर के नाम पर पुरस्कारों की स्थापना भी की गई। मध्य प्रदेश सरकार ने १९८४ में लता मंगेशकर अवार्ड की स्थापना की। बाद में, १९९२ में महाराष्ट्र सरकार ने भी लता मंगेशकर अवार्ड की स्थापना की।



बेसुरी नहीं होती कम्बख्त !
लता मंगेशकर की गायिकी की श्रेष्ठता का अंदाजा उनके बारे में दिग्गजों की टिप्पणियों से लगाया जा सकता है। उस्ताद बड़े गुलाम अली खान कहा करते थे, “कमबख्त कभी बेसुरी न होती।दिलीप कुमार तो उन्हें अपनी छोटी बहन मानते थे और खुदा की कुदरत का करिश्मा बताते थे।



४ फिल्मों का निर्माण ५ में संगीत
लता मंगेशकर ने चार फिल्मों का निर्माण भी किया था। उनके द्वारा निर्मित चार फिल्मों में एक मराठी फिल्म थी। तीन हिंदी फिल्मों में झांझर का निर्माण उन्होंने सी रामचंद्र के साथ किया था। दो हिंदी फिल्मों में कंचन गंगा और लेकिन थी। लता मंगेशकर ने पांच मराठी फिल्मों का संगीत भी तैयार किया था।



जब रो पड़े नेहरू
यह वाकया १९६२ के भारत-चीन युद्ध के बाद का है। इस युद्ध में भारत को चीन से करारी हार का सामना करना पड़ा था। पूरा देश शर्म, दुःख और रोष में डूबा हुआ था। उस समय प्रदीप ने श्रद्धांजलिस्वरुप एक गीत ऐ मेरे वतन के लोगों लिखा था। इसे सी रामचंद्र ने संगीतबद्ध किया था और लता मंगेशकर ने गाया था। एक सभा में, तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में, लता मंगेशकर ने गाया था। कहा जाता है कि इस गीत को सुन कर नेहरू की आँखों में आंसू आ गए थे।



लता मंगेशकर पर टीवी सीरियल और फिल्म
लता मंगेशकर और आशा भोसले के संबंधों पर एक सीरियल मेरी आवाज़ ही पहचान है बनाया गया था।  यह सीरियल २०१६ में एंड टीवी से प्रसारित हुआ था।  इस शो में अमृता राव और दीप्ति नवल ने लता मंगेशकर और अदिति वासुदेव और ज़रीना वहाब ने आशा भोसले के रील लाइफ किरदार किये थे।  इस शो के ९५ एपिसोड्स में, लता मंगेशकर के जीवन पर काफी प्रकाश पड़ता था। 




सोशल मीडिया पर सक्रिय लता मंगेशकर
नब्बे साल की लता मंगेशकर किसी युवा ट्विट्टेराती की तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी। उनके ट्विटर अकाउंट पर नियमित सन्देश अपलोड होते थे। किसी फ़िल्मी हस्ती के जन्मदिन और पुण्य तिथि पर वह अपना सन्देश डालना नहीं भूलती थी। वह भूले बिसरे संगीतकार दत्ता दवाजेकर की स्मृति पर भी सन्देश देती है तो सचिनदेव बर्मन के संगीत को भी याद करती थी। किसी के पुरस्कार-सम्मान जीतने और निधन की खबर पर बधाई और शोक संदेशों में लता मंगेशकर की वाल आगे रहती थी। वह राजनीतिक हस्तियों को भी याद करती। पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गाँधी सरदार पटेल की जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर लता जी के सन्देश देखे जा सकते हैं तो वह प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भी बधाई देती है। राहुल गांधी की भी उपेक्षा नहीं करती। 

हिंदी फिल्म संगीत को मधुर आवाज़ देने वाली लता मंगेशकर



स्वर कोकिला और हिंदी फिल्मों की मशहूर पार्श्वगायिका लता मंगेशकर का जन्म २८ सितम्बर १९२९ को ब्रिटिश इंडिया के अंतर्गत सेंट्रल इंडिया एजेंसी के इंदौर राज्य के इंदौर में हुआ था। उनकी माँ का नाम शेवंती था। शेवंती
, पिता दीनानाथ की दूसरी पत्नी थी। लता का जन्म का नाम हेमा था। जिसे  बाद में बदल कर लता कर दिया गया। यह नाम पिता के एक नाटक भाव बंधन की किरदार लतिका से लिया गया था। पिता ने अपना उपनाम हार्डिकर से बदलकर मंगेशकर किया था, क्योंकि वह गोवा में अपने गाँव मंगेशी की याद बनाए रखना चाहते थे।



मास्टर विनायक की सरपरस्ती - लता के पिता पंडित दीनानाथ, रंगमंच के कलाकार और क्लासिकल गायक थे। लता के एक भाई हृदयनाथ मंगेशकर और तीन बहने उषा मंगेशकर, आशा भोसले और मीना खादिकर हैं। लता अपने पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। लता ने पांच साल की उम्र से पिता के संगीतमय नाटको में अभिनय से शुरू कर दिया था। १९४२ में, पिता की मृत्यु के समय लता सिर्फ १३ साल की थी। परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी। इस पर उनके एक पारिवारिक मित्र मास्टर विनायक ने परिवार की देखभाल के साथ साथ लता मंगेशकर का अभिनेत्री और गायिका के तौर पर करियर शुरू करवाया ताकि लता परिवार की जिम्मेदारी ठीक से उठा सकें।



एक दिन स्कूल गई थी डॉक्टर लता मंगेशकर - दिलचस्प तथ्य है कि लता मंगेशकर ने कभी कॉलेज का मुंह नहीं देखा। वह केवल एक दिन स्कूल गई। लेकिन, उन्हें ६ विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली। कहा जाता है कि लता, अपने स्कूल के पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा को साथ ले कर गई थी तथा  उन्होंने स्कूल के बच्चों को संगीत सीखना शुरू कर दिया था। इसके लिए उन्हें मना किया गया तो लता ने स्कूल ही हमेशा के लिए छोड़ दिया।



क्रिकेट पसंदीदा - उन्हें क्रिकेट देखना और बाइसिकल पर सवारी पसंद थी। वह मसालेदार भोजन और कोका कोला की शौक़ीन थी। जबकि, किसी गायक या गायिका के लिए यह वर्जित है। उनके पसंदीदा एक्टर दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन और देव आनंद तथा पसंदीदा अभिनेत्रियाँ नर्गिस और मीना कुमारी थी। पसंदीदा संगीतकारों में गुलाम हैदर, मदन मोहन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और ए आर रहमान के नाम शामिल हैं। वह गुलाम हैदर को अपना गॉड फादर मानती थी।



संगीत के शिक्षकलता मंगेशकर ने अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के अलावा उस्ताद अमानत अली खान, अमानत खान देवास्वले, गुलाम हैदर और पंडित तुलसीदास शर्मा से ली थी। लता मंगेशकर ने पहला पार्श्व गायन मराठी फिल्म गजाभाऊ (१९४३) में हिंदी गीत माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू से किया था। हालाँकि, लता मंगेशकर का गाया पहला गीत मराठी फिल्म किती हसाल (१९४२) का नाचू या गड़े, खयूल साडी मणि हौस भारी था, जो बाद में फिल्म से निकाल दिया गया। लता ने मास्टर विनायक की पहली हिंदी फिल्म बड़ी माँ (१९४५) में अपनी बहन आशा के साथ एक छोटी भूमिका भी की थी। मास्टर विनायक ही फिल्म अभिनेत्री नंदा के पिता थे।




गुलाम हैदर की भविष्यवाणी - गुलाम हैदर को लता मंगेशकर अपना गॉड फादर मानती थी। क्योंकि, गुलाम हैदर चाहते थे कि लता मंगेशकर उनके द्वारा संगीतबद्ध फिल्म शहीद (१९४८) के लिए गीत गाये। इसके लिए उन्होंने लता का परिचय फिल्म के निर्माता शशधर मुख़र्जी से कराया। लेकिन मुख़र्जी को लता की आवाज़ काफी बारीक और ऊंची पिच वाली लगी। उन्होंने लता की आवाज़ को रिजेक्ट कर दिया। इस पर गुलाम हैदर ने भविष्यवाणी की कि आने वाले सालों में फिल्म निर्माता और निर्देशक अपनी फिल्म में लता की आवाज़ का इस्तेमाल करने के लिए उनके पाँव पकड़ेंगे। लता का पहला गाया पहला गीत फिल्म मजबूर का दिल मेरा तोडा, मुझे कहीं का न छोड़ा था, गुलाम हैदर द्वारा ही संगीतबद्ध किया गया था।



नूरजहाँ से प्रभावित थी - लता के शुरूआती गीतों में उनकी गायन शैली नूरजहाँ से प्रभावित थी। लेकिन, बाद में उन्होंने इसे छोड़ कर अपनी मौलिक शैली में गाना शुरू कर दिया। एक बार दिलीप कुमार ने, लता द्वारा हिंदी/उर्दू गीतों को मराठी लहजे में गाने पर टिपण्णी की थी। इस पर लता ने शफी नाम के उर्दू शिक्षक से उर्दू की शिक्षा ली और उच्चारण में सुधार किया।



आयेगा आने वाला से शोहरत - लता को शोहरत मिली महल (१९४९) के गीत आएगा आने वाला आएगा से। इस फिल्म का संगीत खेमचंद प्रकाश ने तैयार किया था। लता मंगेशकर का गाया यह गीत हिंदी फिल्म जगत का सबसे कठिन गीत माना गया था। लेकिन, इस गीत को आज भी लता की गायिकी में सबसे सुंदर तरीके से गाया गया गीत माना जाता है।



सभी संगीतकारों और गायकों की प्रिय गायिका - लता मंगेशकर ने लगभग सभी समकालीन संगीतकारों के लिए गीत गाये। उन्होंने सबसे ज़्यादा ७१२ गीत लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल की जोड़ी की फिल्मों के लिए गाये। उन्होंने सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, नौशाद, मदन मोहन, कल्यानजी आनंदजी, खय्याम, हुसनलाल भगतराम, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, आदि संगीतकारों के लिए गीत गाये। उन्हें राग आधारित गीत गाने में महारत हासिल थी. लता मंगेशकर के राग आधारित गीतों में बैजू बावरा का मुझे भूल गए सावरिया, दिल अपना और प्रीत पराई का अजीब दास्ताँ है ये, हम दोनों का अल्लाह तेरो नाम ख़ास उल्लेखनीय हैं। लता मंगेशकर ऎसी गायिका थी, जिन्होंने बाप और बेटा दोनों के संगीतबद्ध गीतों को आवाज़ दी। एसडी बर्मन के बेटे राहुल देव बर्मन की पसंदीदा आवाज़ आशा भोसले की थी। लेकिन, पंचमदा भी  रॉकी के क्या यही प्यार है, अगर तुम न होते के हमें और जीने की, मासूम के तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी और लिबास के सीली हवा छू गई गीत लता मंगेशकर से गवाने के लिए मज़बूर हुए। यश चोपड़ा, हमेशा अपनी फिल्म में लता का कोई न कोई गीत रखना चाहते थे। उनका मानना थी कि लता दीदी के गाने से उनकी फिल्म की सफलता सुनिश्चित हो जाती थी। लता मंगेशकर ने अपने ७ दशक लम्बे पार्श्व गायन करियर में मधुबाला, नर्गिस, वैजयंतीमाला और निम्मी से लेकर प्रीटी जिंटा तक अभिनेत्रियों के किरदारों के गीतों को अपनी आवाज़ दी।



रिकॉर्ड और विवाद - लता मंगेशकर का नाम सबसे ज़्यादा गीत रिकॉर्ड करवाने के कारण गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी कुछ समय तक दर्ज हुआ। लेकिन, मोहम्मद रफ़ी ने इस दावे का विरोध किया। लता और मोहम्मद रफ़ी के बीच रॉयल्टी को लेकर लम्बे समय तक तनातनी चली। लता पर यह भी आरोप लगा कि वह अपनी बहन आशा के साथ बॉलीवुड पर एकाधिकार बनाये रखना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने सुमन कल्याणपुर, शारदा, आदि की आवाज़ों को ज़मने नहीं दिया। संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन, शारदा से पार्श्व गायन कराने लगी तो लता और आशा भोसले ने उनके लिए गाना छोड़ दिया।



पुरस्कार और सम्मानउन्हें पद्मभूषण (१९६९), दादा साहेब फाल्के अवार्ड (१९८९), पद्मा विभूषण (१९९९), भारत रत्न (२००१) और भारत की स्वतंत्र की ६०वी वर्षगाँठ के अवसर पर वन टाइम अवार्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट से नवाज़ा गया. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों ने उनके नाम पर संगीत के लता मंगेशकर अवार्ड स्थापित किये. २०१९ में लता मंगेशकर ने ९०वे जन्मदिन पर भारत सरकार ने उन्हें डॉटर ऑफ़ द नेशन से सम्मानित किया। उन्होंने तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म परिचय (१९७२), कोरा कागज़ (१९७४) और लेकिन (१९९०) के लिए मिला था. लेकिन के लिए बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर का नेशनल फिल्म अवार्ड जीतने वाली सबसे ज्यादा उम्र की थी।
लता मंगेशकर ने चार फिल्मों का निर्माण किया। इनमे से एक मराठी और तीन हिंदी फ़िल्में झांझर, कंचन और लेकिन थी। उन्होंने कुछ मराठी फिल्मों के लिए संगीत रचना भी की।

Friday 16 July 2021

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता सुरेखा सीकरी का निधन



फिल्म बधाई हो में, आयुष्मान खुराना की दादी की भूमिका करने वाली अभिनेत्री सुरेखा सीकरी का हृदयाघात से निधन हो गया है. वह ७६ साल की थी.


१९ अप्रैल १९४५ को दिल्ली में जन्मी सुरेखा सीकरी के अभिनय जीवन की शुरुआत रंगमंच से हुई थी. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्नातक सुरेखा सीकरी की फिल्मों में अभिनय यात्रा अमृत नाहटा की राजनीतिक व्यंग्य फिल्म किस्सा कुर्सी का (१९७५) से हुई थी.


उन्होंने अपने अभिनय जीवन में रंगमंच, फिल्म और टीवी में समान अधिकार से अभिनय किया. उन्होंने अभिनय के लिए तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलें. यह पुरस्कार तामस, मम्मो और बधाई हो के लिए थे. फिल्म बधाई हो में सुरेखा सीकरी ने आयुष्मान खुराना की दादी की भूमिका से दर्शकों और समीक्षकों को बेहद प्रभावित किया था.


नसीरुद्दीन शाह, सुरेखा सीकरी के पूर्व जीजा थे. नसीरुद्दीन शाह की बेटी हिबा शाह ने टीवी सीरियल बालिका वधु में अपनी मौसी की युवा भूमिका की थी. सुरेखा सीकरी को १९८९ में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया था. उन्हें श्रद्धांजलि.

Monday 12 July 2021

कुश्ती के अपराजेय रुस्तम दारा सिंह

 


उन्होंने १९५४ में नेशनल रेसलिंग चैंपियनशिप जीती. वह इस खिताब को जीतने के समय सिर्फ २४ साल के थे. रुस्तम ए पंजाब और रुस्तम ए हिन्द का खिताब जीता. वह रुस्तम ए हिन्द का खिताब जीतने के समय २६ साल के थे. १९५९ और १९९६ में कॉमनवेल्थ चैंपियन बने.


उनका फिल्म करियर फिल्म संगदिल (१९५२) से शुरू हुआ. बाबुभाई मिस्त्री की फिल्म किंग कोंग उनकी बतौर नायक पहली फिल्म थी. उनकी मुमताज़ के साथ जोड़ी खूब जमी. हालाँकि, किंग कोंग की नायिका कुमकुम थी. उन्होंने मुमताज़ के साथ १६ फ़िल्में की.


उन्हें उस समय प्रति फिल्म ४ लाख मिला करते थे. उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में फौलाद, रुश्तम ए बग़दाद, आवारा अब्दुल्ला, सेमसन, आया तूफ़ान, आंधी और तूफ़ान, रुश्तम ए हिन्द, बॉक्सर, आदि थी.


वह सिकंदर ए आज़म में पृथ्वीराज कपूर के पोरस के सिकंदर थे. बलराम श्रीकृष्णऔर कृष्णा कृष्णा के बलराम थे. हरी दर्शन और हर हर महादेव में शिव बने थे. अमर शहीद भगत सिंह में क्रन्तिकारी केहर सिंह बने थे. वह फिल्म बजरंगबलि, लव कुश और रामायण सीरियल के हनुमान थे.


उन्होंने ७ पंजाबी और हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया . फिल्म मर्द में अमिताभ बच्चन के बाप और जबन वी मेट में करीना कपूर के दादा जी तथा राज्य सभा सांसद बनने वाले यह व्यक्ति थे कुश्ती के अजेय दारा सिंह. कैसी विडम्बना थी कि उनकी मृत्यु आज के दिन १२ जुलाई २०१२ को दिल का दौरा पड़ने से हुई.