Saturday 1 November 2014

बॉक्स ऑफिस पर 'रोर' टाइगर्स ऑफ़ द सुंदरबन्स



विक्टोरिया नंबर २०३, चोरी मेरा काम, यह रात फिर न आएगी, प्रोफ़ेसर प्यारेलाल, जैसे फिल्मों के निर्देशक ब्रिज  सडाना और पुरानी स्टंट फिल्मों की नायिका सईदा  खान के बेटे कमल सडाना ने लम्बे समय तक अजय गोयल और सुखवंत ढड्डा का निर्देशक असिस्टेंट रहने के बाद  कमल ने फिल्म बेखुदी से काजोल के साथ फिल्म डेब्यू किया।  बेखुदी को बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की बेरुखी मिली। लेकिन, काजोल चल निकली, कमल सडाना पीछे रह गए।  उन्होंने रंग और बाली उम्र को सलाम जैसी फ्लॉप फ़िल्में करने के बाद अपने हीरो को सलाम कर दिया और कर्कश फिल्म का निर्देशन किया।  फिल्म ज़्यादातर फेस्टिवल्स में देखि जा सकी।  अपने पिता की फिल्म विक्टोरिया नंबर २०३ का रीमेक बनाने के बाद वह तकनीकी प्रक्षिक्षण के लिए विदेश चले गए।  उन्होंने स्पेशल  इफेक्ट्स में ख़ास तौर पर वीएफएक्स में, रूचि दिखलायी।  इसी का नतीजा है इस शुक्रवार रिलीज़ फिल्म रोर टाइगर्स ऑफ़ द  सुंदरबन्स।  कमल सडाना ने रोर को लिखा और निर्देशित किया है।  फिल्म के संवाद और पटकथा आनंद गोराडिया ने लिखी है। 
फिल्म की कहानी सिर्फ इतनी है कि पंडित का भाई सुंदरबन के जंगलों में वाइल्ड फोटोग्राफी करने आता है।  वह  जंगल में शिकारियों द्वारा लगाए गए ट्रैप से एक सफ़ेद शेर के बच्चे को बचा कर अपने कमरे में ले आता है।  फारेस्ट अफसर उस बच्चे को अपने साथ ले जाती है।  शेर के बच्चे के मुंह में लगे खून को जिस तौलिये से पोंछा जाता है, वह जंगल के कमरे में ही रखा है।  शेरनी उसे सूंघते हुए आती है और पंडित के भाई को मार डालती है। शेरनी से अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए पंडित अपने फौजी साथियों के साथ जंगल आता है।  वह फारेस्ट अफसर के मना करने बावजूद शेरनी को मारने के लिए जंगल में पानी के रास्ते घुसता है। फिर सब कैसे एक एक कर मारे जाते हैं? क्या पंडित शेरनी को मार पाता  है? क्या होता है यह जानना देखने के लिहाज से ज़बरदस्त है।  
हिमार्षा
फिल्म की कहानी बेकार है।  अगर, इस फिल्म की कहानी केवल जंगल की घटनाओं को लेकर बनायीं जाती तो कुछ बात बनती।  क्योंकि, शेरनी बदला लेने की थ्योरी तो पहली ही नज़र खारिज हो जाती है।  इसे रोमांचक घटनों से गूंथा जा सकता था।  स्क्रिप्ट और  स्क्रीन प्ले के द्वारा इसे बखूबी किया गया है।  वीएफएक्स के द्वारा ऐसे ऐसे रोमांचक दृश्य फिल्माएं गए हैं, जो अभूतपूर्व हैं।  सिनेमाघर में बैठे दर्शक जंगल का रोमांच महसूस करते हैं।  इस फिल्म की खासियत यह है कि  यह कहानी चलने के साथ साथ सुंदरबन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां भी देती जाती हैं।  जानवरों और साँपों के व्यवहार का भी दर्शकों से परिचय कराती जाती है। इन्ही सब कारणों से फिल्म रोर टाइगर्स ऑफ़ द  सुंदरबन्स ख़ास बन जाती है।  निर्देशन के लिहाज़ से कमल सडाना अच्छा काम कर ले जाते हैं। रोमांच फिल्मों में संगीत (बैक ग्राउंड) और  फोटोग्राफी का ख़ास महत्त्व होता है।  जॉन स्टीवर्ट और माइकल वाटसन इस क्षेत्र में अपना काम ज़बरदस्त करते हैं।  उनके कारण फिल्म साधारण से असाधारण बन जाती है।  कमल सडाना के साथ मुजम्मिल नासिर ने अपने संपादन से फिल्म को सुस्त नहीं पड़ने दिया है।  एक के बाद एक रोमांचक दृश्य दर्शकों को चौंकाते जाते है।  जब फिल्म ख़त्म होती है तो वह तालियां बजाने से खुद को रोक नहीं पाता।  यही कमल सडाना और उनके साथियों की सफलता है।
नोरा फतेही
फिल्म में पंडित की मुख्य भूमिका में टीवी एक्टर अभिनव शुक्ल है।  उनका काम अच्छा है।  सुब्रता दत्त को भीरा की खल  भूमिका दी है।  पर लिखते समय भीरा को ख़ास तवज़्ज़ो नहीं दी गयी है।  इसलिए वह उभरने नहीं पाते। फिल्म की तमाम स्टारकास्ट काम पहचानी या नयी है। आरन चौधरी ने सूफी, प्रणय दीक्षित ने मधु, वीरेंदर सिंह घूमन ने सीजे, अचिंत कौर ने फारेस्ट अफसर, पुलकित ने उदय और अली क़ुली ने हीरो की भूमिका की है।  यह सब अपनी भूमिकाओं के उपयुक्त है।  यहाँ  जिक्र करना होगा दो अभिनेत्रियों का।  सीजे की भूमिका में नोरा फतेही और झुम्पा की भूमिका में हिमर्षा फिल्म को ख़ास बनाती है।  हालाँकि, यह दोनों अभिनेत्रियां अभिनय के लिहाज़ से कमज़ोर हैं, लेकिन अपनी सेक्स अपील से दर्शकों को बहला ले जाती हैं।  नोरा फतेही तो एक्शन भी खूब करती हैं।  जंगल में शेरों  से बच कर भाग सीजे दर्शकों को तालियां बजाने  को मज़बूर कर देती हैं।  


अगर आप जंगल की वास्तविकता देखना चाहते हैं, जंगल और उसके प्राणियों को समझना चाहते हैं, अगर आप रोमांच के दीवाने हैं, तो रोर टाइगर्स ऑफ़ द  सुंदरबन्स आपके लिए ही बनी है।  ज़रूर देखिएगा।  कमल सडाना से आगे भी कुछ अच्छी फिल्मे देखने को मिल सकती हैं।   
































ऋचा चड्ढा का 'मसान' में स्वच्छ भारत अभियान


भारतीय प्रधान मंत्री  के स्वच्छ भारत मन्त्र का असर बॉलीवुड पर काफी हुआ है। बॉलीवुड सेलिब्रिटी की ऐसी प्रभावित कलाकारों की श्रंखला में ऋचा चड्ढा भी शामिल हो गयी हैं. ऋचा चड्ढा को दर्शकों ने फुकरे और गैंग्स ऑफ़ वासेपुर जैसी फिल्मों में लीक से हट कर भूमिकाएं करते देखा हैं। काम बजट की फिल्मों में उनके किरदार यादगार बन जाते हैं।  आजकल ऋचा वाराणसी यानि प्राचीन बनारस में नीरज घैवन  की फिल्म मसान की शूटिंग कर  रही हैं  । उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह सेट पर गन्दगी न तो खुद फैलाएंगी न किसी को फैलाने देंगी।  उन्होंने यूनिट के सभी लोगों से अनुरोध किया कि  वह लोग शूटिंग के   दौरान प्लास्टिक बैग, कप और प्लेट का उपयोग नहीं करें।  अगर कोई ऎसी चीज है भी तो उसे कूड़ेदान में डालें   या किसी नियत स्थान पर पहुंचा दें।  ख़ास तौर पर बनारस के घाटों को शूटिंग के बाद रोज ही बिलकुल साफ़ कर दें।  वह कहती हैं, "पवित्र गंगा को स्वच्छ रखने के लिहाज़ से स्वच्छ भारत अभियान बहुत पॉजिटिव है। हम केवल बोलते हैं, गंगा को साफ़ करने के लिए करते कुछ नहीं।  हमारा यह छोटा योगदान है। हो सकता है इससे कुछ दूसरे भी प्रेरित हों।" इसमे कोई शक नहीं कि  ऋचा चड्ढा को यह छोटा योगदान महत्वपूर्ण है, क्योंकि, फिल्म वालों का सन्देश निचले स्तर  तक आसानी से पहुँच जाता है।

शुरू होगा प्रेम रतन धन पायो से नया ट्रेंड !

खबर है कि निर्देशक सूरज बडजात्या की फिल्म प्रेम रतन धन पायो से नया ट्रेंड शुरू हो सकता है. उल्लेखनीय है कि राजश्री प्रोडक्शंस का अपनी फिल्मो के वितरण का अपने आप में अनोखा तरीका है. यह बैनर अपनी फ़िल्में हजारों प्रिंट में एक साथ रिलीज़ कर वीकेंड में १०० करोड़ कमाने में विश्वास नहीं करता. राजश्री प्रोडकशन्स ने हम आपके हैं कौन के सेटेलाइट और वीडियो के अधिकार बेचे नहीं थे. बाद की फिल्मों को पहले सीमित प्रिंट्स में रिलीज़ करने के बाद धीरे धीरे प्रिंटों की संख्या में इज़ाफ़ा किया. अब यह बात दीगर है कि कभी यह दांव उल्टा पड़ा. लेकिन, राजश्री प्रोडक्शन ने अपना तरीका नहीं बदला. अब पता चला है कि राजश्री प्रोडक्शंस फिल्म प्रेम रतन धन पायो को रिलीज़ करने के लिए किसी डिस्ट्रीब्यूटर का सहारा नहीं लेगा. राजश्री प्रोडक्शन का अपना डिस्ट्रीब्यूशन ऑफिस पूरे देश में है. पूरे भारत के प्रदर्शकों ने राजश्री प्रोडक्शन से संपर्क करके प्रेम रतन धन पायो की रिलीज़ के लिए अपने सिनेमाघरों का प्रस्ताव पेश किया है. वह अपना थिएटर बुक कराने के लिए कुछ धनराशि का भुगतान करने तक के लिए तैयार है. ध्यान रहे कि सलमान खान की दोहरी भूमिका वाली फिल्म प्रेम रतन धन पायो दिवाली २०१५ वीकेंड में रिलीज़ होगी. अगर, राजश्री का यह प्लान टारगेट पर लगता है तो कोई शक नहीं कि जल्द ही डिस्ट्रीब्यूटर नाम का जीव फिल्म निर्माता और सिनेमाघर मालिकों के बीच से गायब हो जाए.

मैं डायरेक्शन एन्जॉय करता हूँ - आदित्य ओम

आदित्य ओम को एक्टर या डायरेक्टर या दोनों ही कहा जा सकता है।  वह बन्दूक  और शूद्र जैसी चर्चित और विवादित फिल्मों के हीरो थे।  उनकी फिल्म फन फ्रीक्ड  फेसबुक रिलीज़ होने वाली है। इस फिल्म, उनकी पहले की फिल्मों, एक्टिंग या डायरेक्शन के उनके शौक, आदि पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश-
फन  फ्रीक्ड फेसबुक क्या है ? यह किसके लिए है ? इससे आप क्या बताना चाहते हैं? क्या फेसबुक खतरनाक है? या सावधानी बरतनी चाहिए ?
'फन फ्रीक्ड  फेसबुक' सबके लिये है । यह एक शुद्ध कमर्शियल फिल्म है,  जिसका उद्देश्य मनोरंजन करना है, हाँ इसमें सोशल मीडिया एडिक्शन और उसके ख़तरों से जुड़े पहलुओं को भी छुआ गया है । इंटरनेट  एक अजीबोग़रीब दुनिया है, जहाँ  इनफार्मेशन और नॉलेज के अलावा समाज की हर बुराई भी आसानी से उपलब्ध है । इंटरनेट पर आप किसी भी तरह की झूठी पहचान बना के किसी से भी बात कर सकते है  यह वाक़ई एक वर्चुअल वर्ल्ड है ।
 आजकल मोबाइल या एसएमएस को हॉरर का जरिया बना लिया गया है. क्या इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स डराने वाले हैं ?  
टेक्नोलॉजी हमेशा उपयोग करने वाले के ऊपर होती है कि  वह  उसका सही ग़लत कैसा भी इस्तेमाल कर सकता है । एक पारदर्शी माध्यम न होने के कारण फेसबुक या एसएमएस या ट्वीटर पर उलटी सीधी बात करने वालों को एक निर्भीकता एक सुरक्षा मिल जाती है । इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट ने जीवन को आसान बनाया है,  लेकिन इंटरनेट ने हर व्यक्ति को ड्यूल आइडेंटिटी दी है- एक रियल और एक वर्चुअल जिसके मनोवैज्ञानिक असर दूरगामी और भयावह है ।
आपने पहले अपने एक्टिंग करियर की  शुरुआत साउथ की मूवीज से की।  आपको हिंदी फिल्मों में आने में १२ साल क्यों लगे? इस बीच आपकी एक फिल्म मिस्टर लोनली  रिलीज़ हुई। 
मैंने कोई भी चीज़ किसी प्लानिंग या टाईमटेबल के तहत नहीं की, क्योंकि जीवन ऐसे चलता नहीं है । जो काम हाथ में आया वो अपनी क्षमताओं के अनुसार निभाया । कुछ ग़लतियाँ भी हुई लेकिन हर क़दम पर मेरा एक ही प्रयास था कि किस तरीक़े से अपनी कला को और निखारू हाउ टू  बिकम अ टोटल सिनेमा पर्सन, जिसे सिनेमा  के हर पहलू की पकड़ हो, समझ हो  । बॉलीवुड आज एक बंद दुनिया हैै, जहाँ  कनेक्शंस, नेटवर्किंग, फैमिली नाम और अथाह पैसे के बग़ैर आप मेनस्ट्रीम में मुख्य अभिनेता या एवं फिल्म डायरेक्टर के तौर पे सर्वाइव  नहीं कर पायेंगे । इन सारी कसौटियों पर मैं खरा नहीं उतरता था।  फिर भी मैंने हार नहीं मानी है और प्रयत्नशील हूँ ।
मिस्टर लोनलीकिस प्रकार की फिल्म थी ?
मिस्टर लोनली एक बग़ैर किसी संवाद वाली एक्सपेरिमेंटल फिल्म थी,  जो शायद मैं और अच्छी बना सकता था।
आपकी फ़िल्में बन्दूक और शूद्र  चर्चित भी हुई और  विवादित भी, लेकिन यह फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल सकीं। आप अपनी इस असफलता के लिए किसे दोषी मानते है ?
आजकल फिल्म्स का बॉक्स ऑफिस सिर्फ़ उसकी मार्केटिंग निश्चित करती है। ये तथ्य हर कोई जानता है । दो सौ करोड़ और डेढ़ सौ करोड़ कमाने वाली फिल्मों की क्वालिटी की सच्चाई हर कोई जानता है । बंदूक़ और शूद्र (इसका निर्देशन मेरे मित्र  संजीव जैस्वाल ने किया था) दोनो अपने दायरे में अच्छी फ़िल्में थी, जिन्हें समीक्षकों का भरपूर प्रेम मिला लेकिन बॉक्स ऑफिस पर कुछ ख़ास नहीं हो पाया । हम लोग अपनी मार्केटिंग में फेल हुये लेकिन बहुत कम लोग इस बात को समझते हैं कि इन फिल्मों की इतनी बड़ी रिलीज़ होना ही बहुत बड़ी बात है ।
दो हिंदी फिल्मों की असफलता से आपने क्या सबक लिया ?
अपने काम पर और अपनी मेहनत अौर आत्मविशलेशण तथा कमर्शियल पहलू को ध्यान में रखना । प्रोडक्ट ऐसा हो जिसकी मार्केटिंग युथ और कंस्यूमर सेगमेंट में हो सके ।
क्या आप हमेशा अपनी फ़िल्में डायरेक्ट करते हैं ? क्या इस प्रकार से आप पर एक्स्ट्रा प्रेशर नहीं रहता ? यह किस  किस प्रकार से फायदेमंद लगता है आपको ?
सिनेमा विज़न का खेल है . अगर कल किसी दूसरे डायरेक्टर ने अच्छे विज़न के साथ एप्रोच किया और हमारे बजट मे़ काम करने को तैयार है तो क्यों नही । ऐसा कोई भी नियम मैंने अपने ऊपर नहीं लगाया है । जहाँ तक रही प्रेशर की बात तो जिस काम को आप एन्जॉय करते है़ं उसमें प्रेशर कैसा ।
फेसबुक के पोस्टर में छह अधनंगी लड़कियां दिखायी गयीं हैं।  इस पोस्टर से आप क्या बताना चाहते हैं ?
जी ये  फीमेल सेंट्रिक फिल्म है । इसके किरदारों की पृष्ठभूमि हाई सोसाइटी की है  उसी के हिसाब से उनका पहनावा है ।  मेरी पिछली फ़िल्मों में भी किरदारों के बैकग्राउंड के अनुसार ही पहनावा था ।
माया मोबाइल के बारे में बताएं ?
माया मोबाइल मेरी बहुचर्चित शार्ट फिल्म है,  जिसमें मोबाइल फोन मिलने के बाद एक गाँव के पुजारी का जीवन किस प्रकार बदल जाता है, दिखाया गया है । माया मोबाइल को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में बहुत अवार्ड्स भी मिले। मैंने शार्ट फिल्म विधा में काफ़ी काम किया है   मेरी एक और शार्ट फिल्म 'फॉर माय मदर' भी काफ़ी सराही गई ।
आपको डायरेक्शन पसंद है या एक्टिंग? अगर डायरेक्शन  पसंदीदा एक्टर है, जिसे आप डायरेक्ट करना चाहेंगे और एज ऐन एक्टर किस के डायरेक्शन में काम करना चाहेंगे ?
जो अभिनेता मेरी कहानी पर फिट हो, उसी के साथ काम करने की मेरी इच्छा रहती है । किसी ख़ास एक्टर के हिसाब से मैंने आजतक किसी फिल्म को नहीं बनाया । बतौर एक्टर अगर मुझे हॉलीवुड के कुछ डायरेक्टर्स जैसे कि डैनी  बॉयल, टारनटिनो,  मार्टिन स्कोर्सेस, ओलिवर स्टोन की फिल्मों में खड़ा होने का भी मौक़ा मिले तो यह मेरा सौभाग्य होगा । ऑफ़ कोर्स मैं किल्म डायरेक्शन ज़्यादा एन्जॉय करता हूँ, क्योंकि इसमें सारी मानवीय कलाओं का समागम है । इट  इज़  द हाईएस्ट इवॉल्वड आर्ट फॉर्म व्हिच इन्वोल्वेस इंटीग्रेशन ऑफ़ द  विसुअल, साउंड एंड इन्ट्यूसन। 


आवाज़ बदल रहा है बाजीराव रणवीर सिंह !

रणवीर सिंह के बारे में कहा जाता है कि  वह अपने किरदारों में डूब जाने वाले अभिनेता हैं।  अब तक उन्होंने जितनी फ़िल्में की हैं, उनसे वह अपनी रोमियो टाइप इमेज बनाते नज़र आते हैं।  ऎसी भूमिकाएं उनकी ऑफ स्क्रीन इमेज के साथ मेल खाती हैं।  अब उन्होंने खुद को भूमिकाओं के अनुरूप ढालने का प्रयास भी शुरू कर दिया है।  संजयलीला भंसाली की फिल्म गोलियों की रास लीला -राम-लीला में उनकी भूमिका उनकी इमेज के अनुरूप आधुनिक गुजराती रोमियो टाइप थी।  परन्तु राम की भूमिका के लिए उन्होंने अपने बाल लम्बे रखे और मूछों के साथ ठेठ गुजराती पोशाकों में नज़र आये।  अब बाजीराव मस्तानी में उन्होंने परफेक्शन की  दिशा में अगला कदम रखा है।  फिल्म के लिए उन्होंने अपने सर के बाल मुंडवा दिए हैं।  वह क्लीन शेव, एक मराठी पेशवा जैसे चेहरे  मोहरे के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।  लेकिन, रणवीर सिंह यहीं नहीं रुक रहे।  उन्होंने एक पेशवा का राजसी बाना ही नहीं पहना है, उन्होंने अपनी आवाज़ में भी बदलाव किया है।  उन्होंने अपनी आवाज़ में उतार चढ़ाव के जरिये गहराई और भारीपन लाने का प्रयास किया है।  एक ऐसा ही प्रयास अमिताभ बच्चन ने १९९० में रिलीज़ फिल्म अग्निपथ में विजय दीनानाथ की आवाज़ के लिए किया था।  इस प्रकार से, रणवीर सिंह अमिताभ बच्चन का अनुसरण करते लगते हैं।  अब देखने वाली बात होगी कि पत्नी काशीबाई और नर्तकी प्रेमिका मस्तानी के प्रेम में उलझे रणवीर सिंह खुद को कितना प्रभावशाली साबित कर पाते हैं।




दीपिका पादुकोण के ऑफ स्क्रीन प्रेमियों का स्क्रीन टकराव !

अभी तक की धमाकेदार खबर यह है कि क्रिसमस २०१५ किसी खान का नहीं होगा।  अगले साल की २५ दिसंबर को संजयलीला भंसाली और इम्तियाज़ अली ने सुरक्षित करा लिया है।  इस दिन शुक्रवार है।  यानि परफेक्ट वीकेंड।  एक्सटेंडेड वीकेंड का कोई टंटा नहीं। इसलिए, संजयलीला भंसाली ने अपनी निर्देशित फिल्म बाजीराव मस्तानी और इम्तियाज़ अली ने भी अपनी निर्देशित फिल्म तमाशा की रिलीज़ की तारीख २५ दिसंबर तय कर दी है।  संजय की फिल्म में रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में हैं।  इम्तियाज़ अली की फिल्म में इम्तियाज़ के प्रिय अभिनेता रणबीर कपूर दीपिका पादुकोण के साथ तमाशा दिखा रहे हैं। इस प्रकार से दीपिका पादुकोण अपनी  मुख्य भूमिका वाली फिल्म बाजीराव मस्तानी के सामने तमाशा लेकर आ खडी हुई हैं।  दिलचस्पी यहीं ख़त्म नहीं होती।  यह दीपिका के प्रेमियों का स्क्रीन टकराव भी है।  रणवीर सिंह के साथ दीपिका रोमांस सुर्ख होता रहता है।  बात तो यहाँ तक है कि  दोनों शादी करने जा रहे हैं।  कुछ ऎसी ही सुर्खियां दीपका के रणबीर के साथ रोमांस को भी मिलती थीं। उन दिनों कहा गया कि  दीपिका रणबीर के घर के लोगों से भी मिल चुकी हैं।  लेकिन, बाद में सब कुछ कैटरीना  कैफ हो गया ।  अब जबकि दीपिका के जीवन में रणवीर सिंह और रणबीर कपूर के जीवन में कैटरीना कैफ आ गयी हैं, यह देखना दिलचस्प हो जाता है कि  अपनी दो फिल्मों से अपने दो प्रेमियों (बेशक एक पूर्व और दूसरा वर्तमान) को आमने सामने ला चुकी, दीपिका पादुकोण की इन फिल्मों को २५ दिसंबर का बॉक्स ऑफिस कैसा रिस्पांस देता है ? क्या ऐतिहासिक ड्रामा जीतेगा या आधुनिक तमाशा ! दर्शक, दीपिका पादुकोण की किस फिल्म को तरजीह देंगे ! वर्तमान प्रेमी  रणवीर सिंह के साथ बाजीराव मस्तानी को या पूर्व प्रेमी रणबीर कपूर के साथ तमाशा को ! देख तमाशा देख !!!

अनोखी स्टार कास्ट वाली फिल्म पीकू

सुजीत सरकार की फिल्म पीकू अब तक की बड़ी और अनोखी कास्ट वाली फिल्म होगी।   पीकू में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ बेहतरीन दीपिका पादुकोण और इरफ़ान खान जैसे बेहतरीन एक्टर पहली बार एक साथ अभिनय करते हुए दिखेंगे । इस फिल्म का दूसरा शेडूल नवंबर २०१४ से कलकत्ता में शुरू होगा।   फिल्म का पहला शेडूल इस साल अगस्त से सितम्बर के बीच मुंबई में पूरा किया जा चुका है । सोनी एंटरटेनमेंट नेटवर्क डिवीज़न तथा स्वरस्वती एनटरटेन्मेंट क्रिएशन लिमिटेड और राइजिंग सन फिल्म के संयुक्त सहयोग से बनायी जा रही फिल्म पीकू २०१५ की सबसे चर्चित फिल्म मानी जा रही है।  फिल्म के निर्देशक सुजीत सरकार  इस से पहले विकी डोनर और मद्रास कैफे जैसी चर्चित फिल्मो का निर्देशन कर चुके है । पीकू  एक रोलरकोस्टर की सवारी जैसी  उत्साही पिता और पुत्री की कहानी है ।  पिता और पुत्री के किरदार में अमिताभ बच्चन और दीपका होगे । पीकू के बारे में सुजीत सरकार कहते है, " पीकू  एक ऐसी  कहानी है,  जो  आपके दिल को छू जायेगी । ​ मेरे लिए काफी सम्मान की  बात है कि अमिताभ जी , दीपिका और इरफ़ान खान जैसे पावर हाउस परफॉर्मर्स के साथ काम कर हूँ। " इस फिल्म में अमिताभ बच्चन किस प्रकार के नज़र आएंगे, उसकी एक झलक सोशल मीडिया के लिए जारी हुई है. इसमे अमिताभ बढ़ी तोंद के साथ थके हुए नज़र आ रहे हैं। अमिताभ बच्चन कहते है "फिल्म की कहानी बड़ी रोचक है ।  इस साल मैं कई प्रोजेक्ट्स  कर रहा हूँ।  उनमे से पीकू मेरे लिए खास है ।" पीकू अगले साल अप्रैल में रिलीज़ होगी।