भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Thursday 5 March 2015
Wednesday 4 March 2015
'फोकस' में विल स्मिथ ने गन्दी बात !
सेंसर बोर्ड के 'गन्दी बात' निर्देश का शिकार हॉलीवुड फिल्म 'फोकस' भी हो गयी है। इस फिल्म को इस शुक्रवार यानि ६ मार्च को रिलीज़ होना था, लेकिन इसे अब आगे किसी डेट के लिए टाल दिया गया है। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड के सदस्यों द्वारा देखे जाने के बाद कुछ कट्स लगाने के निर्देश फिल्म के प्रोडूसर वार्नर ब्रदर्स को दिए गए थे। लेकिन, उन्हें फिल्म में सेंसर के बताये कट्स लगाना मंज़ूर नहीं हुआ। इसलिए, वार्नर ब्रदर्स अपील के लिए रिवीजन समिति के पास चले गए। अब रिवीजन समिति फिल्म देख कर निर्णय लेगी। लेकिन, समिति इस फिल्म को शुक्रवार से पहले देख कर 'फोकस' को सर्टिफिकेट नहीं दे सकती थी। इस फिल्म में हॉलीवुड अभिनेता विल स्मिथ एक कॉन आर्टिस्ट की भूमिका में हैं , जिसका अपनी ही चेली से टकराव हो जाता है। फिल्म में विल की चेली की भूमिका मार्गोट रॉब्बी ने की है। ध्यान रहे कि विल स्मिथ की पिछली दो फ़िल्में 'आफ्टर अर्थ' और 'विंटर्स टेल' वर्ल्ड बॉक्स ऑफिस पर कुछ ख़ास नहीं कर सकी थी। २७ फरवरी को पूरी दुनिया में ३३२३ प्रिंट्स में रिलीज़ की गई फिल्म 'फोकस' ने १८.६८ मिलियन डॉलर का वीकेंड किया था। यह विल की पिछली सोलो फिल्म 'सेवन पाउंड्स' से थोड़ा ही ज़्यादा है। इसके बावजूद यह माना जा रहा है कि 'फोकस' 'सेवन पाउंड्स' के ७० मिलियन डॉलर के बिज़नेस को पाने में नाकाम रहेगी। ऐसी दशा में शुक्रवार को 'फोकस' का टालना वार्नर ब्रदर्स के लिए घाटे का सौदा रहेगा। क्योंकि, ६ मार्च को सोनी/कोलंबिया की विज्ञानं फंतासी फिल्म 'चैपी' रिलीज़ हो रही है। इस फिल्म में ह्यू जैकमैन की मुख्य भूमिका है। भारत में ह्यू जैकमैन बड़ा क्रेज है। ऐसे में 'फोकस' के लिए भारतीय दर्शकों का खुद पर फोकस बनवा पाना मुश्किल होगा।
Tuesday 3 March 2015
गो गोवा जापान !
एरोस इंटरनेशनल २१ मार्च को जापान में सैफ अली खान की ज़ोंबी फिल्म 'गो गोवा गॉन' को रिलीज़ करेगा। एरोस को लगता है कि जापान में भारतीय फिल्मों की मांग है। कृष्णा-डीके निर्देशित यह ज़ोंबी कॉमेडी फिल्म इंडियन बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर सकी थी। पर एरोस को ऐसा लगता है कि जापान में भारतीय फिल्मों की मांग है। जापान में अभी २१ फरवरी को रिलीज़ फिल्म 'फेरारी की सवारी' को जापान में उत्साहजनक सफलता मिली थी। जबकि इंडियन बॉक्स ऑफिस पर 'फेरारी की सवारी' भी असफल रही थी। इसी से उत्साहित हो कर एरोस ने गो गोवा गॉन को जापान में रिलीज़ करने की सोची। जापानी मार्किट में, इससे पहले रजनीकांत की फिल्म 'रोबोट', शाहरुख़ खान और दीपिका पादुकोण की फिल्म 'ओम शांति ओम' और इधर हाल ही में श्रीदेवी की फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' रिलीज़ हुई थी। इन फिल्मों को जापानी बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता मिली थी। फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' ने तो जापानी बॉक्स ऑफिस पर दस लाख अमेरिकी डॉलर की कमाई भी और लम्बे समय तक जापानी बॉक्स ऑफिस पर चलती रही। जापानी बाजार में बॉलीवुड फिल्मों को रिलीज़ करने के लिए उनके प्रचार पोस्टरों को जापानी भाषा के रंग में रंगा जाता है। देखिये 'फेरारी की सवारी' और 'गो गोवा गॉन' के पोस्टर।
"फीमेल जगजीत सिंह बनना मेरी ज़िन्दगी का मक़सद है- जेनीवा रॉय
जेनीवा रॉय भारत की एक.मात्र ऐसी ग़ज़ल सिंगर हैं जिन्होंने ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में ना केवल महारत हांसिल की है, बल्कि उनकी ग़ज़लों की.एलबम-"एहसास प्यार का" और"सोचते-सोचते" को देश विदेश के संगीत प्रेमियों द्वारा काफी पसंद किया गया है। खनकदार आवाज़ की मल्लिका, प्रतिभा सम्पन्न और समर्पित भावना से ओतप्रोत युवा ग़ज़ल गायिका जेनीवा रॉय मरहूम ग़ज़ल मैस्ट्रो जगजीत सिंह की ग़ज़ल गायिकी से बेहद प्रभावित हैं। शायद इसीलिए उन्होंने ढेर सारे एक्टिंग और प्लेबैक सिंगिंग के ऑफर ठुकरा कर 'फीमेल जगजीत सिंह' बनने का नारा बुलंद किया है। पिछले दिनो मैं जेनीवा रॉय से उनके कैरियर और भावी योजनाओं को लेकर हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-
आपकी ग़ज़लों की एलबम 'एहसास प्यार का' और 'सोचते सोचते' को.ग़ज़ल प्रेमियों से बढ़िया रिस्पांस मिला है ?
मैं अपने आपको बड़ी ख़ुशक़िस्मत मानती हूँ क़ि. अब जब न्यू जनरेशन की.गैलेरी. में म्यूजिक. की शक्ल बिलकुल अलग थलग हो गईं है, ऐसे.में मेरी. दोनों एलबमस को अच्छ खासा रिस्पांस म्यूजिक लवर्स में मिला। और तो.और मुझे गल्फ कंट्रीज में बहुत मान सम्मान मिला। कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिये भी नॉमिनेट हुई।
आपने तो काफी सालों से अलग अलग मिज़ाज़ की ग़ज़लों को सुना-गुना है आपकी अपनी राय में ग़ज़लों में क्या विशेषता होनी चाहिए ?
मैंने तो हमेशा से ही देखा है क़ि ग़ज़लों की कॉम्पोजिशन के साथ साथ दिल को झंकृत करने वाले कलाम यानि लिरिक्स का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। शायद यही वजह है क़ि उन ग़ज़ल गायकों को सफलता नहीं मिली जिन्हें शायरी, पोएट्री की नोलॉज नहीं थी।
क्या आपने इस यूएसपी को अपनी अलबमों में अपनाया है ?
यक़ीनन क्योंक़ि मैं अच्छी तरह से जानती हूँ क़ि ग़ज़लों की आत्मा लफ़्ज़ों की अदायगी है। वह उन्हें लोकप्रिय बनाने में कितना बड़ा रोल निभाती है। इसलिए मैंने अपनी दोनों एलबम्स में शायरों के चयन का विशेष ध्यान. रखा है। एहसास प्यार का में. दुबई के मशहूर शायर सैयद अब्बू वाकर मलिकी, सोचते सोचते में नक़्श लायलपुरी को लिया और अब मेरी नई एलबम संगदिल में मुन्नवर राणा. और नवाब आरज़ू ने ग़ज़लें लिखी हैं।
आप.भारत की पहली महिला गायिका है.जो फीमेल जगजीत सिंह बनने का बीड़ा उठाए हुए हैं। इसकी क्या वजह है? क्या आपकी ग़ज़ल.गायिकी मे वह विशेषताएं है, जिनके लिए जगजीत सिंह का बिलकुल अलग मुकाम अब तक.बना हुआ है ?
जी हाँ कुदरतन मुझमें वह सारी खूबियाँ है, जिनकी वजह से जगजीत सिंह ग़ज़लों के बादशाह कहलाए। मैं .ऐसा समझती हूँ क़ि जगजीत सिंह मेरे रोल मॉडल.उस समय से रहे जब मैं उनकी .ग़ज़लों से गहरी पैठ बना रही.थी। उनकी गायिकी के गुण जैसे, आवाज़ का सही मात्रा में उतार चढाव, कलाम के मर्म को समझकर लफ़्ज़ों की अदायगी, सुरों में संतुलन, आदि मुझमें स्वाभाविक रूप से उतरता चला गया। इसी तारतम्य में दुबई के दुबई क्लब में आयोजित ग़ज़ल तुम्हारी आवाज़ मेरी प्रोग्राम में जब मैंने अपने ग़ज़लों के आराध्य की गाई ग़ज़ल अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको को गाया तो ऑडियन्स ने मुझे किसी दूसरे फनकार की ग़ज़लें गाने ही नहीं दी। प्रोग्राम की कुछ लिमिटेशन थी, मेरे प्रोग्राम के बाद बॉलीवुड के एक नामचीन सिंगर का परफॉर्मेन्स होना था मगर ऑडियंस की डिमांड्स पर मैं रात भर जगजीत सिंह की ग़ज़लें गाती रही। दुबई बहरीन, मॉरीशस, आदि देश विदेशों में मुझे ग़ज़ल सिंगर के तौर पर बम्फर रिस्पांस मिला। बस तभी से मैंने "फीमेल जगजीत सिंह" बनना ज़िन्दगी का मक़सद बना लिया।
आपकी ग़ज़लों की एलबम 'एहसास प्यार का' और 'सोचते सोचते' को.ग़ज़ल प्रेमियों से बढ़िया रिस्पांस मिला है ?
मैं अपने आपको बड़ी ख़ुशक़िस्मत मानती हूँ क़ि. अब जब न्यू जनरेशन की.गैलेरी. में म्यूजिक. की शक्ल बिलकुल अलग थलग हो गईं है, ऐसे.में मेरी. दोनों एलबमस को अच्छ खासा रिस्पांस म्यूजिक लवर्स में मिला। और तो.और मुझे गल्फ कंट्रीज में बहुत मान सम्मान मिला। कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिये भी नॉमिनेट हुई।
आपने तो काफी सालों से अलग अलग मिज़ाज़ की ग़ज़लों को सुना-गुना है आपकी अपनी राय में ग़ज़लों में क्या विशेषता होनी चाहिए ?
मैंने तो हमेशा से ही देखा है क़ि ग़ज़लों की कॉम्पोजिशन के साथ साथ दिल को झंकृत करने वाले कलाम यानि लिरिक्स का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। शायद यही वजह है क़ि उन ग़ज़ल गायकों को सफलता नहीं मिली जिन्हें शायरी, पोएट्री की नोलॉज नहीं थी।
क्या आपने इस यूएसपी को अपनी अलबमों में अपनाया है ?
यक़ीनन क्योंक़ि मैं अच्छी तरह से जानती हूँ क़ि ग़ज़लों की आत्मा लफ़्ज़ों की अदायगी है। वह उन्हें लोकप्रिय बनाने में कितना बड़ा रोल निभाती है। इसलिए मैंने अपनी दोनों एलबम्स में शायरों के चयन का विशेष ध्यान. रखा है। एहसास प्यार का में. दुबई के मशहूर शायर सैयद अब्बू वाकर मलिकी, सोचते सोचते में नक़्श लायलपुरी को लिया और अब मेरी नई एलबम संगदिल में मुन्नवर राणा. और नवाब आरज़ू ने ग़ज़लें लिखी हैं।
आप.भारत की पहली महिला गायिका है.जो फीमेल जगजीत सिंह बनने का बीड़ा उठाए हुए हैं। इसकी क्या वजह है? क्या आपकी ग़ज़ल.गायिकी मे वह विशेषताएं है, जिनके लिए जगजीत सिंह का बिलकुल अलग मुकाम अब तक.बना हुआ है ?
जी हाँ कुदरतन मुझमें वह सारी खूबियाँ है, जिनकी वजह से जगजीत सिंह ग़ज़लों के बादशाह कहलाए। मैं .ऐसा समझती हूँ क़ि जगजीत सिंह मेरे रोल मॉडल.उस समय से रहे जब मैं उनकी .ग़ज़लों से गहरी पैठ बना रही.थी। उनकी गायिकी के गुण जैसे, आवाज़ का सही मात्रा में उतार चढाव, कलाम के मर्म को समझकर लफ़्ज़ों की अदायगी, सुरों में संतुलन, आदि मुझमें स्वाभाविक रूप से उतरता चला गया। इसी तारतम्य में दुबई के दुबई क्लब में आयोजित ग़ज़ल तुम्हारी आवाज़ मेरी प्रोग्राम में जब मैंने अपने ग़ज़लों के आराध्य की गाई ग़ज़ल अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको को गाया तो ऑडियन्स ने मुझे किसी दूसरे फनकार की ग़ज़लें गाने ही नहीं दी। प्रोग्राम की कुछ लिमिटेशन थी, मेरे प्रोग्राम के बाद बॉलीवुड के एक नामचीन सिंगर का परफॉर्मेन्स होना था मगर ऑडियंस की डिमांड्स पर मैं रात भर जगजीत सिंह की ग़ज़लें गाती रही। दुबई बहरीन, मॉरीशस, आदि देश विदेशों में मुझे ग़ज़ल सिंगर के तौर पर बम्फर रिस्पांस मिला। बस तभी से मैंने "फीमेल जगजीत सिंह" बनना ज़िन्दगी का मक़सद बना लिया।
अज़हर हो तो इमरान हाशमी जैसा !
लगता है मिया इमरान हाशमी इंडियन क्रिकेट टीम में जगह बना कर ही मानेंगे। जिस समर्पण भाव से वह आजकल नेट प्रैक्टिस में जुटे हुए हैं, उससे तो ऐसा ही लगता है। इमरान हाशमी पूर्व क्रिकेट कैप्टेन मोहम्मद अज़हरुद्दीन पर बायोपिक फिल्म 'अज़हर' में अज़हरुद्दीन का किरदार कर रहे हैं। अज़हरुद्दीन अपने समय के मजे हुए क्रिकेटर थे। उनका कलाइयों के ज़रिये बैट से बॉल को घुमा कर बाउंड्री मारना तालियां बटोर लेता था। ऐसे में ऐसे क्लासिकल बैट्समैन को रील लाइफ में प्ले करना आसान नहीं होता । इसीलिए इमरान हाशमी को इस किरदार को रियल बनाने के लिए जम कर नेट प्रैक्टिस करनी पड़ती है। ताकि, जब वह सेट पर जाएँ तो उनकी कलाइयां बैट को उसी तरह से घुमाए, जैसे अज़हर घुमाया करते थे। इमरान हाशमी के समर्पण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शूटिंग के दौरान नेट पर हरेक दिन ३००- ४०० बॉल्स खेलने के कारण उनकी कलाइयों में सूजन आ गयी थी। दर्द भी काफी हो रहा था। इसके बावजूद इमरान हाशमी ने न केवल नेट प्रैक्टिस की बल्कि अज़हर की तरह सटीक लेग ग्लांस भी किया। तभी तो सब कह रहे हैं- अज़हर हो तो इमरान हाशमी जैसा !
Monday 2 March 2015
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