भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Monday 10 August 2015
तमाशा की रैपअप पार्टी
फिल्म 'तमाशा' पूरी हुई। ९ अगस्त को हुई फिल्म की रैपअप पार्टी में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण भी कुछ ऐसे शामिल हुए। देखिये कुछ फोटोज -
जब 'भाइयों' ने वेलकम किया टुटी वेडिंग का !
अनीस बज़्मी की कॉमेडी डॉन ड्रामा फिल्म 'वेलकम बैक' के गाने 'टुटी वेडिंग बोले दी' के वीडियो को टेलीविज़न और सोशल साइट्स पर की सफलता के बाद फिल्म वेलकम बैक के म्यूजिक को जोरशोर से लांच होना ही था। पिछले दिनों फिल्म के तीन मुख्य भाई किरदारों मजनू भाई, उदय भाई और अज्जु भाई यानि अनिल कपूर, नाना पाटेकर और जॉन अब्राहम ने फिल्म के आधा दर्जन से ज़्यादा संगीतकारों द्वारा तैयार संगीत को लांच किया। 'टुटी वेडिंग बोले दी' के संगीतकार मीका सिंह हैं। उन्होंने ही इस गीत को गया भी है और वीडियो में हिस्सा भी लिया है। इस गीत के बारे में फिल्म के निर्देशक अनीस बज़्मी बताते हैं, "मैं कॉंफिडेंट हूँ कि वेलकम बैक का टाइटल सांग २००७ की फिल्म वेलकम के टाइटल सांग की तरह पसंद किया जायेगा सराहा जायेगा। मीका सिंह ने इस एलबम में शानदार काम किया है। यह पूरे एल्बम का श्रेष्ठ गीत है।"
मी लार्ड ! यह बॉलीवुड कोर्ट रूम ड्रामा है
कोर्ट रूम ड्रामा
कानून (१९६०) से जज्बा (२०१५) तक आ पहुंचा है। नर्गिस से लेकर ऐश्वर्या राय बच्चन
तक और राजेंद्र कुमार से लेकर अरशद वारसी तक, न जाने कितने एक्टर्स ने काला कोट
पहन कर रूपहले परदे पर ड्रामा फैलाया है। कभी हिंदी फिल्मो का क्लाइमेक्स हुआ करता था कोर्ट
रूम ड्रामा। सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों की जान रहा है कोर्ट रूम ड्रामा। कभी यह
ड्रामा पूरी फिल्म में फैला नज़र आता है। इसी साल रिलीज़ हिंदी मराठी कोर्ट रूम
ड्रामा फिल्म ‘कोर्ट’ को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल फिल्म अवार्ड मिला है। अब
दर्शकों की तमाम निगाहें संजय गुप्ता की फिल्म ‘जज्बा’ पर लगी हुई हैं, जिससे
ऐश्वर्या राय बच्चन एक वकील के किरदार में फिल्मों में अपनी वापसी कर रही हैं।
फिल्म के टाइटल में अदालत
और कानून!
कोर्ट रूम ड्रामा
आँखों के सामने ले आता है निचली अदालत या हाई कोर्ट की बिल्डिंग, काले कोट पहने
घूमते लोग, अदालत का कमरा, ऊंची डायस पर बैठा जज, दांये कटघरे पर खडा मुज़रिम और
काले कोट में सजे एक दूसरे पर चिल्लाते वकील। कभी पूरी फिल्म या फिल्म के आखिरी कुछ
मिनटों में यह दृश्य ड्रामेबाजी के नाटकीय आयाम स्थापित करता था। कोर्ट रूम
ड्रामा की यह झलक हिंदी फिल्मों के शीर्षकों में भी नज़र आती थी। बॉलीवुड ने अदालत
टाइटल के साथ १९४८, १९५८ और १९७७ में हिंदी फिल्मों का निर्माण किया। अदालत
शीर्षक के साथ आप की अदालत, जनता की अदालत, मेरी अदालत और आखिरी अदालत जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ। ए आर कारदार ने १९४३ में शाहू मोदक, महताब और बद्री प्रसाद को लेकर कानून
टाइटल से फिल्म बनाई। कानून शीर्षक वाली बीआर चोपड़ा की राजेंद्र कुमार, अशोक
कुमार और नंदा की फिल्म रहस्य रोमांच के लिहाज़ से मास्टरपीस थी। इस फिल्म
में राजेंद्र कुमार ने पहली बार काला कोट पहन कर अधिवक्ता कैलाश खन्ना की भूमिका
की थी। कानून शीर्षक वाली दो अन्य फ़िल्में १९९४ और २०१४ में रिलीज़ हुई। कानून टाइटल वाली
अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी की एक फिल्म अँधा कानून सुपर हिट हुई थी। इसके अलावा आज का अँधा कानून, धरम और कानून, दूसरा कानून, फ़र्ज़ और कानून, गुनाह और
कानून, कहाँ है कानून, कानून अपना अपना, कानून और मुजरिम, कानून का क़र्ज़, कानून की
हथकड़ी, कानून की ज़ंजीर, कानून क्या करेगा, कानून मेरी मुट्ठी में, कायदा कानून,
कुदरत का कानून, नया कानून, कानून कानून है, मेरा कानून, आदि कानून शीर्षक वाली
दर्जनों फ़िल्में रिलीज़ हुई। इनमे कुछ फ्लॉप हुई तो कुछ का कोर्ट रूम ड्रामा हिट
भी हो गया।
अदालत और कानून नहीं
तो क्या हुआ....!
ज़रूरी नहीं कि टाइटल
में अदालत या कानून का इस्तेमाल हो। लेकिन, इनमे कोर्ट रूम ड्रामा था।साठ और सत्तर के दशक तक तो अदालत, कानून और
कोर्ट रूम फिल्मों की ज़रूरी डिश हुआ करती थी। यह फ़िल्में किसी हॉलीवुड या विदेशी
फिल्मों का रीमेक हुआ करती थी। मसलन, विक्रम भट्ट की लिसा हेडन और आफताब
शिवदासानी अभिनीत फिल्म कसूर हॉलीवुड फिल्म जैग्ड एज की रीमेक थी। अजय देवगन और अक्षय
खन्ना की फिल्म दीवानगी हॉलीवुड फिल्म प्राइमल फियर का रीमेक थी। समर खान की
कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म शौर्य मोटा मोटी अ फ्यू गुड मेन पर आधारित थी। इसके अलावा
निर्देशक सुहैल तातारी की फिल्म अंकुर अरोरा मर्डर केस और राजकुमार राव की हंसल
मेहता निर्देशित फिल्म शाहिद उल्लेखनीय फ़िल्में हैं। कुछ ऐसी फ़िल्में भी हैं, जिनके
कोर्ट रूम ड्रामा ने फिल्मों को हिट बना दिया।
ऐतराज (२००४)- अब्बास
मस्तान ने हॉलीवुड फिल्म डिस्क्लोजर का भारतीयकरण कर अक्षय कुमार, करीना कपूर और
प्रियंका चोपड़ा की फिल्म ऐतराज़ बना दिया। इस फिल्म में अन्नू कपूर और करीना कपूर
ने काला कोट पहन कर कोर्ट रूम में भरपूर ड्रामा किया था। वकील करीना कपूर अपने
ऑनस्क्रीन पति अक्षय कुमार को बलात्कार के आरोप से बरी करवाती हैं।
नो वन किल्ड जेसिका
(२०११)- जेसिका लाल मर्डर केस पर राजकुमार गुप्ता की नो वन किल्ड जेसिका में
दिखाया गया था कि किस प्रकार से वकीलों द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जाती है। इस फिल्म में विद्या बालन और रानी मुख़र्जी की मुख्य भूमिका थी।
ओएमजी- ओह माय गॉड
(२०१२)- गुजराती नाटक पर इस फिल्म का फॉर्मेट बड़ा दिलचस्प था। एक वकील अपनी दूकान
का मुआवजा लेने के लिए ईश्वर, अल्लाह और क्राइस्ट को प्रतिवादी बनाता है। अक्षय
कुमार और परेश रावल के उत्कृष्ट अभिनय और उमेश शुक्ल के निर्देशन ने फिल्म को हिट
बना दिया। फिल्म के कोर्ट रूम में दिलचस्प पैरवी का ड्रामा था।
जॉली एलएलबी (२०१३)-
सुभाष कपूर की यह फिल्म एक असफल वकील अरशद वारसी के माध्यम से अदालतों की स्थिति
पर व्यंग्य करती थी। किस प्रकार से नामचीन वकील अदालत को प्रभावित करने की कोशिश
करते हैं, इसका चित्रण भी फिल्म में हुआ था। फिल्म में अरशद वारसी और बोमन ईरानी
के बीच का कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म की जान था।
एक रुका हुआ फैसला
(१९८६)- निर्देशक बासु चटर्जी ने रंजित कपूर के साथ अमेरिकन फिल्म १२ एंग्री मेन
(१९५७) को एक रुका हुआ फैसला बना दिया था। पंकज कपूर, दीपक काजीर, अमिताभ श्रीवास्तव, एस एम् ज़हीर, एम् के रैना, के के रैना, आदि की जूरी की भूमिका वाली
फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ में जूरी के बारह सदस्यों को बंद कमरे में एक आदमी
द्वारा अपने बूढ़े पिता की हत्या पर बहस करके फैसला लेना है। केवल एक कमरे में
फिल्माई गई यह फिल्म उत्कृष्ट लेखन का नमूना है।
मोहन जोशी हाज़िर हों
(१९८४)- सईद अख्तर मिर्ज़ा की फिल्म ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’ मोहन के किरदार से न्याय
व्यवस्था की खामियों और सुस्तियों को व्यंग्यात्मक ढंग से उजागर करती थी। नेशनल
फिल्म अवार्ड विजेता इस फिल्म में दसियों साल तक मुकदमे चलते रहने, वकीलों और
अदालत का क्रमचारियों की मिली भगत से अपराधियों के छूट जाने को दर्शाया गया था। फिल्म में मोहन जोशी की भूमिका में भीष्म सहनी ने मार्मिक अभिनय किया था। वकील
बने नसीरुद्दीन शाह और सतीश शाह की कुटिलता देखने योग्य थी।
वकीलों के किरदार
में सुपर स्टार
जब हिंदी फिल्मों के
कोर्ट रूम ड्रामा का इतिहास पुराना है तो ज़ाहिर है कि वकील किरदार भी उतने ही
पुराने रहे होंगे। इन काले कोट वाले किरदारों को तमाम सुपर स्टार्स ने किया। इनकी अदायगी के कारण उनकी फिल्मों के कोर्ट रूम सीन्स जानदार बन गए। हिंदी
फिल्मों के सदाबहार हीरो अशोक कुमार ने कई फिल्मों में वकील किरदार किये। उनके
अभिनय से सजी वकील किरदार वाली फिल्मों में धूल का फूल, पूजा के फूल, ममता, धुंध,
आदि उल्लेखनीय थी। अनिल कपूर ने चॉकलेट, ठिकाना, मेरी जंग और युद्ध में वकील
किरदार किये थे। मेरी जंग में उनका अदालत में ज़हर पीकर एक मुजरिम को निर्दोष
साबित करने का सनसनीखेज था। अमिताभ बच्चन ने महान और ज़मानत में काला कोट पहना। शत्रुघ्न सिन्हा के दोस्ताना और विश्वनाथ के वकील किरदार सुपर हिट हुए. उन्होंने फिल्म जुल्मों सितम, इंसानियत के दुश्मन, आमिर आदमी गरीब आदमी और परवाना
में भी वकील किरदार किये। फिल्म जंगबाज़ में राजकुमार ने वकील की भूमिका की थी। फिल्म का किरदार उनकी रियल लाइफ की तरह हेलीकाप्टर से अदालत आता था। वकील
किरदार करने वाले अन्य सुपर स्टारों में विनोद खन्ना (मुकद्दर का सिकंदर, कैद और
पहचान), सुनील दत्त (वक़्त), सनी देओल (दामिनीं और योद्धा), ऋषि कपूर (कारोबार),
मिथुन चक्रवर्ती (हत्यारा), गोविंदा(क्योंकि, मैं झूठ नहीं बोलता), अभिषेक बच्चन
(फिर मिलेंगे), संजीव कुमार (लाखों की बात और खुद्दार), दिलीप कुमार (किला),
राजेंद्र कुमार (कानून और साजन की सहेली), सलमान खान (निश्चय) ने भी वकील किरदार
किये थे। सुपर स्टारों में आमिर खान और शाहरुख़ खान ने अभी तक काला कोट नहीं पहना है।
नर्गिस से ऐश्वर्या राय तक
कदाचित नर्गिस ने सबसे पहले फिल्म आवारा में काला कोट पहन कर फिल्मों
में वकील नायिका का आगाज़ किया। ममता में सुचित्रा सेन भी वकील बनी थी, जो अपनी
माँ की मार्मिक वकालत करती थी। इसके अलावा हेमा मालिनी (दर्द और कुदरत का कानून),
करीना कपूर (ऐतराज़), लिसा रे (कसूर), रवीना टंडन (पहचान), डिंपल कपाडिया (ज़ख़्मी
शेर), वहीदा रहमान (अल्लाहरखा) और लारा दत्ता (बर्दाश्त) ने भी वकील किरदार किये। अब ऐश्वर्या राय बच्चन फिल्म 'जज़्बा' में वकील का किरदार कर रही हैं।
चरित्र अभिनेता बने वकील
कुछ चरित्र अभिनेताओं के किये वकील किरदार मुख्य किरदारों पर भारी पड़े। चरित्र
अभिनेता इफ्तिखान की फिल्म नज़राना, दोस्ताना, मैं तेरे लिए, खट्टा मीठा, सफ़र,
अपराधी कौन, आदि फिल्मों में वकील किरदार उल्लेखनीय थे। इसके अलावा प्राण (मिट्टी और सोना तथा गुमनाम), केएन सिंह (मेरा साया), सदाशिव अमरापुरकर (रिश्ते और सबसे बड़ा खिलाड़ी‑), मदनपुरी (इत्तेफाक), कादर
खान (खुदगर्ज और जस्टिस चौधरी), गोगा
कपूर (आज की औरत,
अंजाने रिश्ते और शहंशाह), डैनी डेन्ग्ज़ोप्पा (ढाल, अधिकार, जीवन, जख्मी
शेर और आखिरी संघर्ष), गुलशन ग्रोवर (बवंडर) अमजद
खान (चमेली की शादी), अनुपम खेर (सत्यमेव जयते, एतबार, जिद्दी, गर्व और जख्मी शेर), किरण
कुमार (नजर के सामने, मोक्ष और क्योंकि मै झूठ
नहीं बोलता), परेश रावल (एतराज और अकेले हम
अकेले तुम), अमरीश पुरी (मेरी जंग, हलचल और दामिनी), शक्ति
(कपूर पाप की आंधी), मोहन जोशी (लाल बादशाह
और क्रोध) के वकील किरदार भी यादगार हैं।
हास्य अभिनेता भी
पीछे नहीं
कई हास्य अभिनेताओं
ने वकील किरदार में अपनी छाप छोडी। असरानी (ये
तेरा घर ये मेरा घर और प्रियतमा), केस्टो
मुखर्जी (आप के दीवाने), उत्पल दत्त (हनीमून), जानी लीवर (हद कर दी आपने), पेटल (किरायेदार), असित
सेन (मंझली दीदी),
देवन वर्मा (सुर संगम), राकेश बेदी (सुनो ससुरजी) तथा (वादा), आईएस जौहर (प्रियतमा और अप्रैल फूल) के वकील किरदार दर्शकों
को आज भी याद हैं।
अमर
अमर फिल्म में दिलीप
कुमार और मधुबाला वकील बने हैं। एक प्रवास के दौरान दिलीप कुमार गाँव की एक लड़की
निम्मी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं। इन संबंधों के फलस्वरूप निम्मी माँ बन जाती
है। लेकिन, वह बच्चे के बाप का
नाम किसी को नहीं बताती। जयंत गाँव का गुंडा है, जिसे वकील मधुबाला सज़ा करवाती है। जेल से छूट कर
जयंत गाँव जाता है। जब उसे बच्चे के बारे में मालूम होता है, तब वह निम्मी से बच्चे के
पिता का नाम पूंछता है। मामला कोर्ट तक पहुंचता है। तमाम नाटकीय बहस के बाद दिलीप
कुमार अपना जुर्म क़ुबूल करता है। लेकिन, वह नापसंदगी की शादी को उम्रकैद की सज़ा मानते हुए, तीन साल की सज़ा भुगतना मंज़ूर करता है। यह कथानक
महबूब की फिल्म अमर का है।
विषय एक फिल्म अनेक !
हालिया रिलीज़ फिल्म 'रहस्य' के निर्देशक मनीष गुप्ता ने विशाल भरद्वाज पर आरोप लगाया है कि विशाल मेरी फिल्म कोई नुक्सान पहुंचाने के लिए तलवार दम्पति के साथ सांठ गाँठ कर रहे थे। दरअसल, विशाल भरद्वाज २००८ में हुए कुख्यात आरुषि हत्याकांड पर फिल्म बनाना चाहते थे। इसके लिए वह तलवार दम्पति और उनके वकील के लगातार संपर्क में थे। लेकिंन, मनीष गुप्ता ने इस कांड पर फिल्म 'रहस्य' आठ महीनों में पूरी कर ली। विशाल भरद्वाज रहस्य के पहले बना लिए जाने से मनीष से नाराज़ थे। इसीलिए उन्होंने रहस्य को रुकवाने में तलवार दम्पति का साथ दिया। यानि यह मामला साफ़ तौर पर एक विषय पर फिल्म बनाये जाने से पैदा दुश्मनी थी। इसके बावजूद फिल्म निर्देशक और गीतकार गुलज़ार की बेटी मेघना गुलजार इसी आरुषि मर्डर केस पर फिल्म 'तलवार' का निर्माण कर रही हैं।
२८ अगस्त को जब दर्शक कबीर खान की फिल्म 'फैंटम' देख रहे होंगे, उन्हें फिल्म कहीं देखी हुई सी लगेगी। दर्शकों को याद आयेगी निर्देशक नीरज पाण्डेय की अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'बेबी' की। इन दोनों फिल्मों के कथानक में काफी समानता है। केवल नीरज पाण्डेय और कबीर खान के स्टोरी ट्रीटमेंट में ही फर्क होगा। फैंटम की पृष्ठभूमि भी मुंबई के २६/११
अटैक और वैश्विक आतंकवाद पर फिल्म है। जहाँ बेबी का अजय राजपूत आतंकवादियों के पीछे इंस्तांबुल, नेपाल, अबु धाबी, आदि देशों तक पहुँचता था, वहीँ फैंटम का दनयाल खान भी यूरोप, अमेरिका और आतंकवाद की नर्सरी पश्चिम एशिया तक जाता दिखाया जायेगा। 'बेबी' की तापसी पन्नू की तरह फैंटम में भी कटरीना कैफ सैफ की मदद करने वाली स्पेशल एजेंट बनी हैं। इन्ही सब समानताओं के कारण फैंटम की रिलीज़ अप्रैल से अगस्त कर दी गई।
'ओह माय गॉड' ! 'पीके' भी !!
अभी बहुत पीछे जाने की ज़रुरत नहीं। आमिर खान और राजकुमार हिरानी की जोड़ी की फिल्म 'पीके' और अक्षय कुमार और उमेश शुक्ल की फिल्म ओएमजी :ओह माय गॉड की कहानी बिलकुल सामान थी। फर्क केवल यह था कि जहाँ फिल्म का मुख्य चरित्र धार्मिक
कठमुल्लों को अदालत तक घसीट कर उनका पर्दाफाश करता हैं, वहीँ पीके में यह काम एक एलियन पीके करता है। ओएमजी गंभीर और विचारवान फिल्म थी। वहीँ पीके कॉमेडी में सनी एक हलकी फुल्की सामान्य कॉमेडी फिल्म थी। विवादों और हिन्दू धर्म पर ज़्यादा प्रहार करने के कारण यह फिल्म हिट हो गई।
बॉलीवुड में कहानियों का टोटा हो गया लगता है। तभी तो एक एक बाद एक सामान कथानकों पर फ़िल्में बनाई जाने लगी है। अब यह बात दीगर है कि एक फिल्म के बाद दूसरी फिल्म की रिलीज़ पर वक़्त लगाने और निर्देशक तथा कलाकारों की भिन्नता के कारण दर्शक ज़्यादा प्रभावित नहीं होते। २००९ में रिलीज़ कबीर खान की जॉन अब्राहम, कटरीना कैफ और नील नितिन मुकेश की फिल्म न्यू यॉर्क और रेंसिल डि सिल्वा की सैफ अली खान, करीना कपूर और विवेक ओबेरॉय की फिल्म कुर्बान की कहानी में भी काफी समानता थी। अब यह बात दीगर है कि कुर्बान को बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं मिली। न्यू यॉर्क ने पहले रिलीज़ हो कर विषय की नवीनता का फायदा उठा लिया।
अनारकली बनाम मुग़ल ए आज़म
सामान विषय पर फ़िल्में बॉलीवुड का कोई नया ट्रेंड नहीं। कोई साठ साल पहले के आसिफ ने अपनी सलीम अनारकली की मोहब्बत की दास्ताँ पर फिल्म बनाने का ऐलान किया था। इस फिल्म के लिए दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर को साइन किया गया। मुग़ल ए आज़म अभी लेखन के स्तर पर थी कि फिल्म की कहानी लीक हो गई। फिल्मिस्तान ने अनारकली के लिए जहांगीर के मुग़ल बादशाह विरुद्ध विद्रोह की कहानी पर फिल्म लिखवा कर १९५३ में अनारकली टाइटल से रिलीज़ करवा दी। इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने सलीम, बीना रॉय ने अनारकली और मुबारक ने अकबर का किरदार किया था। नन्दलाल जसवंतलाल के निर्देशन मे फिल्म अनारकली के सी रामचन्द्र और वसंत प्रकाश के संगीत से सजे गीत सुपर हिट हो गए। अनारकली उस साल १९५३ की सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। एक ही कथानक के बावजूद के आसिफ ने मुग़ल ए आज़म बंद नहीं की। आसिफ को आम तौर पर फिल्म बनाने में काफी वक़्त लगता था। वह परफेक्शन पसंद फिल्मकार थे। इसलिए, उन्हें मुग़ल ए आज़म बनाने में काफी वक़्त लगा। मुग़ल ए आज़म ५ अगस्त १९६० को रिलीज़ हुई। नौशाद के संगीत से सजी यह फिल्म भी बड़ी हिट फिल्म साबित हुई।
के आसिफ ने तो अपना प्रोजेक्ट ख़त्म नहीं किया। लेकिन, राजकुमार हिरानी को फिल्म मुन्नाभाई चले अमेरिका बनाने का इरादा छोड़ना पड़ा। वह लगे रहो मुन्नाभाई के बाद संजय दत्त और अरशद वारसी की जोड़ी के साथ 'मुन्नाभाई चले अमेरिका बनाना चाहते थे। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 'एकलव्य' के साथ फिल्म का टीज़र भी रिलीज़ किया गया। लेकिन, तभी हिरानी को पता चला कि करण जौहर भी इसी से मिलते जुलते सब्जेक्ट पर के सीरियस फिल्म 'माय नाम इज़ खान' बनाने जा रहे हैं। इस पर उन्होंने 'मुन्नाभाई चले अमेरिका' बनाने का इरादा छोड़ दिया। कुछ ऐसा ही मधुर भंडारकर ने भी किया। वह एक बार गर्ल के राजनीतिज्ञ बनने की कहानी पर फिल्म 'मैडमजी' बनाने जा रहे थे। उनकी फिल्म में प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में थी। लेकिन, तभी उन्हें मालूम पड़ा कि केसी बोकाडिया की फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' का विषय भी सामान है। पिछले दिनों रिलीज़ फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' में मल्लिका शेरावत ने जो भूमिका की थी, वही प्रियंका चोपड़ा करने वाली थी।
आशुतोश गोवारिकर की फिल्म खेले हम जी जान से और अनुराग कश्यप की बेदब्रत पैं निर्देशित चट्टगांव की कहानियाँ मानिनी चटर्जी की किताब डू ऑर डाई : द चिट्टगांव अपराइजिंग १९३-४० पर आधारित थी। हालाँकि, आशुतोष गोवारिकर ने इस किताब पर फिल्म बनाने के अधिकार मानिनी से खरीद लिए थे। लेकिन, अनुराग कश्यप ने भी इसी विषय पर फिल्म बनाना शुरू कर दिया। अब यह बात दीगर है कि अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण की फिल्म खेले हम जी जान से पहले रिलीज़ हो कर बुरी तरह से असफल हो गई। अनुराग कश्यप ने आरोप लगाया कि अमिताभ बच्चन ने अपने रसूख का फायदा उठा कर उनकी फिल्म रिलीज़ नहीं होने दी।
२८ अगस्त को जब दर्शक कबीर खान की फिल्म 'फैंटम' देख रहे होंगे, उन्हें फिल्म कहीं देखी हुई सी लगेगी। दर्शकों को याद आयेगी निर्देशक नीरज पाण्डेय की अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'बेबी' की। इन दोनों फिल्मों के कथानक में काफी समानता है। केवल नीरज पाण्डेय और कबीर खान के स्टोरी ट्रीटमेंट में ही फर्क होगा। फैंटम की पृष्ठभूमि भी मुंबई के २६/११
अटैक और वैश्विक आतंकवाद पर फिल्म है। जहाँ बेबी का अजय राजपूत आतंकवादियों के पीछे इंस्तांबुल, नेपाल, अबु धाबी, आदि देशों तक पहुँचता था, वहीँ फैंटम का दनयाल खान भी यूरोप, अमेरिका और आतंकवाद की नर्सरी पश्चिम एशिया तक जाता दिखाया जायेगा। 'बेबी' की तापसी पन्नू की तरह फैंटम में भी कटरीना कैफ सैफ की मदद करने वाली स्पेशल एजेंट बनी हैं। इन्ही सब समानताओं के कारण फैंटम की रिलीज़ अप्रैल से अगस्त कर दी गई।
'ओह माय गॉड' ! 'पीके' भी !!
अभी बहुत पीछे जाने की ज़रुरत नहीं। आमिर खान और राजकुमार हिरानी की जोड़ी की फिल्म 'पीके' और अक्षय कुमार और उमेश शुक्ल की फिल्म ओएमजी :ओह माय गॉड की कहानी बिलकुल सामान थी। फर्क केवल यह था कि जहाँ फिल्म का मुख्य चरित्र धार्मिक
कठमुल्लों को अदालत तक घसीट कर उनका पर्दाफाश करता हैं, वहीँ पीके में यह काम एक एलियन पीके करता है। ओएमजी गंभीर और विचारवान फिल्म थी। वहीँ पीके कॉमेडी में सनी एक हलकी फुल्की सामान्य कॉमेडी फिल्म थी। विवादों और हिन्दू धर्म पर ज़्यादा प्रहार करने के कारण यह फिल्म हिट हो गई।
बॉलीवुड में कहानियों का टोटा हो गया लगता है। तभी तो एक एक बाद एक सामान कथानकों पर फ़िल्में बनाई जाने लगी है। अब यह बात दीगर है कि एक फिल्म के बाद दूसरी फिल्म की रिलीज़ पर वक़्त लगाने और निर्देशक तथा कलाकारों की भिन्नता के कारण दर्शक ज़्यादा प्रभावित नहीं होते। २००९ में रिलीज़ कबीर खान की जॉन अब्राहम, कटरीना कैफ और नील नितिन मुकेश की फिल्म न्यू यॉर्क और रेंसिल डि सिल्वा की सैफ अली खान, करीना कपूर और विवेक ओबेरॉय की फिल्म कुर्बान की कहानी में भी काफी समानता थी। अब यह बात दीगर है कि कुर्बान को बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं मिली। न्यू यॉर्क ने पहले रिलीज़ हो कर विषय की नवीनता का फायदा उठा लिया।
अनारकली बनाम मुग़ल ए आज़म
सामान विषय पर फ़िल्में बॉलीवुड का कोई नया ट्रेंड नहीं। कोई साठ साल पहले के आसिफ ने अपनी सलीम अनारकली की मोहब्बत की दास्ताँ पर फिल्म बनाने का ऐलान किया था। इस फिल्म के लिए दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर को साइन किया गया। मुग़ल ए आज़म अभी लेखन के स्तर पर थी कि फिल्म की कहानी लीक हो गई। फिल्मिस्तान ने अनारकली के लिए जहांगीर के मुग़ल बादशाह विरुद्ध विद्रोह की कहानी पर फिल्म लिखवा कर १९५३ में अनारकली टाइटल से रिलीज़ करवा दी। इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने सलीम, बीना रॉय ने अनारकली और मुबारक ने अकबर का किरदार किया था। नन्दलाल जसवंतलाल के निर्देशन मे फिल्म अनारकली के सी रामचन्द्र और वसंत प्रकाश के संगीत से सजे गीत सुपर हिट हो गए। अनारकली उस साल १९५३ की सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। एक ही कथानक के बावजूद के आसिफ ने मुग़ल ए आज़म बंद नहीं की। आसिफ को आम तौर पर फिल्म बनाने में काफी वक़्त लगता था। वह परफेक्शन पसंद फिल्मकार थे। इसलिए, उन्हें मुग़ल ए आज़म बनाने में काफी वक़्त लगा। मुग़ल ए आज़म ५ अगस्त १९६० को रिलीज़ हुई। नौशाद के संगीत से सजी यह फिल्म भी बड़ी हिट फिल्म साबित हुई।
के आसिफ ने तो अपना प्रोजेक्ट ख़त्म नहीं किया। लेकिन, राजकुमार हिरानी को फिल्म मुन्नाभाई चले अमेरिका बनाने का इरादा छोड़ना पड़ा। वह लगे रहो मुन्नाभाई के बाद संजय दत्त और अरशद वारसी की जोड़ी के साथ 'मुन्नाभाई चले अमेरिका बनाना चाहते थे। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 'एकलव्य' के साथ फिल्म का टीज़र भी रिलीज़ किया गया। लेकिन, तभी हिरानी को पता चला कि करण जौहर भी इसी से मिलते जुलते सब्जेक्ट पर के सीरियस फिल्म 'माय नाम इज़ खान' बनाने जा रहे हैं। इस पर उन्होंने 'मुन्नाभाई चले अमेरिका' बनाने का इरादा छोड़ दिया। कुछ ऐसा ही मधुर भंडारकर ने भी किया। वह एक बार गर्ल के राजनीतिज्ञ बनने की कहानी पर फिल्म 'मैडमजी' बनाने जा रहे थे। उनकी फिल्म में प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में थी। लेकिन, तभी उन्हें मालूम पड़ा कि केसी बोकाडिया की फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' का विषय भी सामान है। पिछले दिनों रिलीज़ फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' में मल्लिका शेरावत ने जो भूमिका की थी, वही प्रियंका चोपड़ा करने वाली थी।
आशुतोश गोवारिकर की फिल्म खेले हम जी जान से और अनुराग कश्यप की बेदब्रत पैं निर्देशित चट्टगांव की कहानियाँ मानिनी चटर्जी की किताब डू ऑर डाई : द चिट्टगांव अपराइजिंग १९३-४० पर आधारित थी। हालाँकि, आशुतोष गोवारिकर ने इस किताब पर फिल्म बनाने के अधिकार मानिनी से खरीद लिए थे। लेकिन, अनुराग कश्यप ने भी इसी विषय पर फिल्म बनाना शुरू कर दिया। अब यह बात दीगर है कि अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण की फिल्म खेले हम जी जान से पहले रिलीज़ हो कर बुरी तरह से असफल हो गई। अनुराग कश्यप ने आरोप लगाया कि अमिताभ बच्चन ने अपने रसूख का फायदा उठा कर उनकी फिल्म रिलीज़ नहीं होने दी।
कुछ और सामान विषय वाली फ़िल्में
एक ही विषय पर दो फिल्मों का सिलसिला जारी है। अभिषेक चौबे की फिल्म उड़ता पंजाब और लव रंजन की फिल्म वाइल्ड वाइल्ड पंजाब के विषय पंजाबी युवा और उनकी परेशानियां हैं। अभिषेक चौबे की फिल्म में शाहिद कपूर, करीना कपूर और अलिया भट्ट और लव रंजन की फिल्म में पंजाबी फिल्मों के सितारे गिप्पी ग्रेवाल मुख्य भूमिका के रहे हैं। इन दोनों ही फिल्मों की शूटिंग आसपास ही शुरू हुई है। अब देखने वाली बात कि कौन फिल्म पहले रिलीज़ होती है।
एक ही विषय पर दो फिल्मों का सिलसिला जारी है। अभिषेक चौबे की फिल्म उड़ता पंजाब और लव रंजन की फिल्म वाइल्ड वाइल्ड पंजाब के विषय पंजाबी युवा और उनकी परेशानियां हैं। अभिषेक चौबे की फिल्म में शाहिद कपूर, करीना कपूर और अलिया भट्ट और लव रंजन की फिल्म में पंजाबी फिल्मों के सितारे गिप्पी ग्रेवाल मुख्य भूमिका के रहे हैं। इन दोनों ही फिल्मों की शूटिंग आसपास ही शुरू हुई है। अब देखने वाली बात कि कौन फिल्म पहले रिलीज़ होती है।
३१ जुलाई को अजय देवगन की फिल्म 'दृश्यम' रिलीज़ होगी। इस फिल्म की कहानी ३ जुलाई को रिलीज़ कमल हासन की फिल्म 'पापनाशम' से मिलती जुलती है। क्योंकि यह दोनों ही फिल्मे २०१३ में हिट मलयाली फिल्म 'दृश्यम' पर आधारित हैं। इस फिल्म पर २०१४ में दो फ़िल्में कन्नड़ दृश्य और तेलुगु दृश्यम बनाई गई थी। इस बारे में अजय देवगन की फिल्म 'दृश्यम' के निर्देशक निशिकांत कामथ कहते हैं, "मेरी फिल्म का ट्रीटमेंट 'पापनाशम्' से अलग होगा। दृश्यम का विषय ऐसा है, जिस पर कितनी भी भाषाओँ में फ़िल्में बनाई जा सकती है। मलयाली दृश्यम पर तेलुगु और कन्नड़ में फ़िल्में बनाई गई और सभी फ़िल्में हिट हुई।"
राजेंद्र कांडपाल
मिला जोवोविच की रेजिडेंट ईविल के फाइनल चैप्टर में वापसी
हॉलीवुड की हीरोइन सेंट्रिक एक्शन फिल्मों की नायिका के रूप में अभिनेत्री मिला जोवोविच लाजवाब हैं। रेसिडेटं ईविल सीरीज की फिल्मों की ऐलिस के किरदार ने उन्हें रेजिडेंट ईविल सीरीज की फिल्मों रेजिडेंट ईविल, रेजिडेंट ईविल अपोकलीप्स, रेजिडेंट ईविल: एक्सटिंक्शन, रेजिडेंट ईविल : आफ्टरलाइफ और रेजिडेंट ईविल: रेट्रीब्यूशन की नायिका बना दिया। रेजिडेंट ईविल सीरीज की पिछली फिल्म रेट्रीब्यूशन २०१२ में रिलीज़ हुई थी। शादी के बाद मिला गृहस्थी में रम गई। वह माँ भी बन गई। लेकिन, अब एक बार फिर वह स्मृति-लोप की बीमारी से ग्रस्त ऐलिस का किरदार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। वह रेजिडेंट ईविल सीरीज की आखिरी फिल्म 'द फाइनल चैप्टर' में अपने तमाम एक्शन दृश्यों को आत्म विश्वास से कर रही है। दो बार की तलाक़शुदा अभिनेत्री मिला जोवोविच के वर्तमान पति पॉल डब्ल्यू एस एंडरसन ही उनके फाइनल चैप्टर के डायरेक्टर हैं। इस फिल्म में ऐलिस को मानवता के आखिरी चिन्ह को ख़त्म करने के लिए तैयार रेड क्वीन को ख़त्म करने के लिए समय से टक्कर लेनी है। रेजिडेंट ईविल : द फाइनल चैप्टर २ सितम्बर २०१६ को रिलीज़ होगी।
बेन एफ्लेक करेंगे द बैटमैन को डायरेक्ट
मास्क वाले सुपर
हीरो के
प्रशंसकों के लिए यह खुश
खबर है। वार्नर
ब्रदर्स और
डिटेक्टिव कॉमिक्स यानि डीसी की
मास्क वाले
सुपर हीरो की फिल्म
'द बैटमैन'
के लिए
राइटर, डायरेक्टर
और रिलीज़
डेट तय
कर ली
गई है। बैटमैन की स्पिन-ऑफ फिल्म 'द बैटमैन' में अभिनेता बेन अफ्लेक बैटमैन सूट और नकाब पहने ही होंगे, वह इस फिल्म के डायरेक्टर भी होंगे। बेन ने कैमरा के पीछे गॉन बेबी गॉन, द टाउन और एर्गो जैसी हिट फ़िल्में दी हैं। इस फिल्म को एर्गो और बैटमैन वर्सेज सुपरमैन : डौन ऑफ़ जस्टिस के लेखक क्रिस टेरियो लिख रहे हैं। द बैटमैन को डायरेक्ट करना बेन अफ्लेक के लिए आसान काम नहीं होगा। वह 'द बैटमैन' के एक्टर-डायरेक्टर तो हैं ही, वह अगले साल जनवरी में रिलीज़ को तैयार फिल्म 'द अकाउंटेंट' के पोस्ट प्रोडक्शन के अलावा 'डॉन ऑफ़ जस्टिस', 'सुसाइड स्क्वाड', 'लाइव बइ नाईट' तथा 'जस्टिस लीग पार्ट १ और २ में भी व्यस्त होंगे। यह सभी फ़िल्में २०१६ और २०१७ में रिलीज़ होनी हैं। जस्टिस लीग फिल्मों के आसपास ही 'द बैटमैन' को रिलीज़ होना है।
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