Friday 6 November 2015

क्या पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री में सांस ले पायेगा बॉलीवुड का बादशाह खान !

शाहरुख़ खान से लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान चले जाओ। शाहरुख़ खान गाना-बजाना करने और नाचने वाला एक्टर है। उसकी साल में औसतन दो फ़िल्में रिलीज़ होती हैं। अगर वह पकिस्तान धर्म के लिहाज़ से न सही, एक्टर के लिहाज़ से चला जाये तो वह वहाँ क्या करेगा! एक्टिंग ही न। आइये जान लेते हैं पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री का हाल। आजादी से पहले हिन्दुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री मुख्य रूप से लाहौर में केन्द्रित थी। इसीलिए, आज की भाषा में पाकिस्तानी इंडस्ट्री को लोलिवुड कहा जाता है। पाकिस्तान की पहली फिल्म १९२८ में बनाई गई। इस फिल्म का नाम डॉटर ऑफ़ टुडे था। पाकिस्तान की पहली पंजाबी फिल्म शीला (पिंड दि कुड़ी) लाहौर में नहीं, बल्कि कलकत्ता में के डी मेहरा ने बनाई थी। पाकिस्तान बनने के बाद गैर मुस्लिम कलाकारों का पाकिस्तान से भागने का सिलसिला शुरू हो गया। अभिनेत्री शहनाज़ बेगम को इसलिए पाकिस्तान से भागना पड़ा, क्योंकि उनकी मातृ भाषा बंगाली थी और उनका रंग काला था। पार्टीशन के दौरान संगीतकार ओ पी नय्यर पर हमला हुआ। एक मुसलमान पडोसी ने उनकी जान बचाई। वह भारत भाग आये। १९५५ में शीला रमानी और मीना शोरी अपने 'वतन' पाकिस्तान गई। शीला रमानी का जल्द ही पाकिस्तान से मोह भंग हो गया। वह हिंदुस्तान वापस आ गई। लेकिन, मीना शोरी वापस नहीं आई। विडम्बना देखिये की अविभाजित भारत की इस पॉपुलर एक्ट्रेस की १९८९ में मौत हुई तो उनको दफनाने के लिए पैसे नहीं थे। १९७१ से पहले पाकिस्तान में लाहौर, कराची और ढाका में फिल्मों का निर्माण होता था। १९७१ में बांगलादेश बनने के बाद ढाका अलग हो गया। पाकिस्तान में मुख्य रूप से उर्दू भाषा में फिल्मे बनाई जाती हैं। पंजाबी, पश्तो, बलूची और सिन्धी भाषा में भी फ़िल्में बनाई जाती है। पाकिस्तानी फिल्म उद्योग हमेशा से इस्लामिक एजेंडा का शिकार होता रहा है। जनरल जिया-उल- हक के शासन काल में इस पर काफी प्रतिबन्ध थोपे गए। नतीजे के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री का ख़ास तौर पर प्रोडक्शन और एक्सिबिशन सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ। नतीजे के तौर पर कभी साल में ८० फ़िल्में बनाने वाला लोलिवुड मुश्किल से दो फ़िल्में बनाने लगा। सिनेमाघर बंद होते चले गए। साठ के दशक में जिस कराची में १०० सिनेमाघर हुआ करते थे और यह सेंटर १०० फिल्मे बनाया करता था, सत्तर के दशक में उसी कराची में दसेक सिनेमाघर ही बचे रह सके। २००२ से सिनेमाघरों को खोले जाने का प्रयास किया जाने लगा। सिनेप्लेक्स के ज़रिये स्क्रीन बढ़ाने की कोशिशें जारी है। वर्तमान में (२००९) पाकिस्तान में ३१९ सिनेमाघर हैं। पाकिस्तानी फिल्म उद्योग साल में १५ फ़िल्में ही बना पाता है। बताते हैं कि एक समय सिनेमाघरों से दूर हो गए दर्शक २०१० में सलमान खान की फिल्म दबंग की रिलीज़ के बाद वापस आने लगे। पाकिस्तान में बॉलीवुड फिल्मों के लिए टिकट दरें ३००-५०० की रेंज में रखी जाती हैं। बॉलीवुड की फ़िल्में दुनिया के जिन ९० देशों में रिलीज़ होती है, वहाँ घुसने की कल्पना तो पाकिस्तानी फ़िल्में करती भी नहीं हैं। पाकिस्तान की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म १९१५ में रिलीज़ जवानी फिर न आनी' है। इस फिल्म ने ३७ करोड़ का बिज़नेस किया है। पाकिस्तान की केवल सात फिल्मे ही १० करोड़ से ज़्यादा का बिज़नेस कर सकी है। पाकिस्तान में अगर कोई फिल्म १० करोड़ कमा ले जाती है तो वह भारतीय फिल्मों के १०० करोड़ में शामिल मानी जाती है। ज़ाहिर है कि पाकिस्तान में १० करोड़ का इलीट क्लब बना हुआ है।
इसे पढने के बाद आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पाकिस्तानी आर्टिस्ट भारत की और क्यों भागते हैं। ऐसे में अगर हफ़ीज़ सईद के बुलावे पर 'असहिष्णुता' का शिकार शाहरुख़ खान पाकिस्तान चला जाये तो वह वहां क्या धोएगा, क्या निचोड़ेगा और क्या ख़ाक सुखायेगा। खुद सूख जायेगा। अगर शाहरुख़ खान इसे सोच ले तो उसका दम पाकिस्तान से दूर मुंबई में मन्नत में बैठे बैठे ही घुट जायेगा।
सबसे ज्यादा बॉक्स ऑफिस कलेक्शन करने वाली पाकिस्तानी फिल्म 'जवानी फिर नहीं आनी' 

Thursday 5 November 2015

जेनिफर एनिस्टन और डेमी मूर से प्रेरित हुई 'मस्तीज़ादे' की सनी लियॉन

दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही सनी लियॉन की फिल्म 'मस्तीज़ादे' में दर्शकों को सनी लियॉन की डबल मस्ती देखने को मिलेगी।  इस फिल्म में सनी लियॉन दोहरी भूमिका में हैं।  वह फिल्म में दो बहनों हॉट और सेक्सी लैला लेले और सुन्दर मगर मूर्ख लिली लेले की भूमिकाएं कर रही हैं। हालाँकि, लिली लेले बेवक़ूफ़ किस्म की है, इसके बावजूद वह अपनी बहन के साथ मिल कर स्ट्रिपटीज़ डांस करते हुए वीर दास और तुषार कपूर को ललचाते हुए नज़र आएंगी।  चूंकि, एक सनी के यह दो किरदार हैं तो स्वाभाविक रूप से इनमे उन्हें फर्क रखना ही होगा।  सनी लियॉन ने दो बहनों के इस फर्क को फिल्म में अपने स्ट्रिपटीज़ डांस में भी कायम रखा है।  उन्होंने, जहाँ लैला लेले की स्ट्रिपटीज़ डांस की शैली फिल्म 'वी आर द मिलरस' में जेनिफर एनिस्टन के स्ट्रिपटीज़ डांस वाली रखी हैं, वहीँ लिली लेले का स्ट्रिपटीज़ डांस फिल्म 'स्ट्रिपटीज़' में डेमी मूर के स्ट्रिपटीज़ की शैली में किया है। 'मस्तीज़ादे' फिल्मों के कथा-पटकथा लेखक मिलाप जावेरी की बतौर निर्देशक दूसरी फिल्म है।  उनकी पहली फिल्म 'जाने कहाँ से आई है' बॉक्स ऑफिस पर असफल हुई थी।  इसलिए, 'ग्रैंड मस्ती' के इस लेखक मिलाप कामुक हावभाव और द्विअर्थी संवादों वाली फिल्म से हिंदी फिल्म दर्शकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।  इस दो बहनों के स्ट्रिपटीज़ डांस सीक्वेंस के बारे में मिलाप जावेरी बताते हैं, "मैंने जब सनी लियॉन को यह सीक्वेंस सुनाया तो उनकी आँखों के सामने जेनिफर एनिस्टन और डेमी मूर के स्ट्रिपटीज़ डांस सीक्वेंस घूम गए। मैं इस सीक्वेंस से चकित कर देने वाला प्रभाव चाहता था।  सनी लियॉन ने ज़बरदस्त डांस किये हैं।" मस्तीज़ादे पिछले दो सालों से बनती रुकती और बनती फिल्म है।  इस फिल्म में सनी लियॉन, वीर दास और तुषार कपूर के अलावा रितेश देशमुख का एक्सटेंडेड कैमिया है। 
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अपनी फिल्मों को प्रचार दिलाने की एसआरके की 'असहिष्णुता' साज़िश !

शाहरुख़ खान और उनके माय नाम इज खान, बट आई एम नॉट टेररिस्ट टाइप के विवादों का चोली दामन का नाता है। इसे यों कहा जा सकता है कि वह इन विवादों से खुद का नाता ज़बरन जोड़ लेते हैं, बशर्ते कि उनकी कोई नई फिल्म रिलीज़ होने जा रही हो। वैसे यह बात आमिर खान पर भी लागू होती हैं। लेकिन, यहाँ सिर्फ शाहरुख़ खान की बात ही करते हैं। शाहरुख़ खान और लश्कर ए तैयबा के फाउंडर हफ़ीज़ सईद का पुराना नाता है। २०१३ में शाहरुख़ खान ने 'आउटलुक टर्निंग पॉइंट' को दिए इंटरव्यू में शाहरुख़ खान ने एक बार फिर खुद को मुसलमान बताते हुए, यह आरोप लगाया कि लोग मेरा हिंदुस्तान के बजाय पाकिस्तान से नाता जोड़ देते हैं। जबकि, शाहरुख़ खान के पारिवारिक परिचय से पता चलता है कि उनके पिता अविभाजित भारत के पेशावर से थे, जो इस समय पाकिस्तान में है। खान के इस कंट्रोवर्सियल बयान के बाद पाकिस्तान से हफ़ीज़ सईद की आवाज़ बुलंद हुई कि अगर शाहरुख़ खान खुद को भारत में असुरक्षित महसूस करते हैं, तो पाकिस्तान में आ सकते हैं। अब यह बात दीगर है कि २०१३ में खान की फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' रिलीज़ हुई। फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज़्यादा झगड़ालू शाहरुख़ खान ही हैं। सलमान खान, आमिर खान, शिरीष कुंदर, अभिजीत भट्टाचार्य (कभी अभिजीत फिल्मों में शाहरुख़ की आवाज़ हुआ करते थे), प्रियंका चोपड़ा, अमिताभ बच्चन और अमर सिंह, आदि के साथ शाहरुख़ खान पंगा लेते रहते हैं। लेकिन, जब उनकी कोई फिल्म रिलीज़ होने को होती है तो वह खुद को खान घोषित करते हुए यह भी कहते हैं, "आई एम नॉट टेररिस्ट" (भाई तुमको टेररिस्ट कहा किसने) . फरवरी २०१० को शाहरुख़ खान की करण जौहर निर्देशित फिल्म 'माय नाम इज खान' रिलीज़ होने को थी। उस दौरान फिल्म की शूटिंग तेज़ी पर थी। शाहरुख़ खान आम तौर पर अपनी फिल्म का प्रचार छह महीना पहले से ही शुरू कर देते हैं। जैसे अभी से रईस और फैन का प्रचार शुरू हो चूका है। जबकि, यह फ़िल्में अगले साल जुलाई और अप्रैल में रिलीज़ होनी है। शाहरुख़ खान ने २००९ में यह सुर्रा छोड़ा कि अगस्त २००९ में उन्हें नेवार्क एयरपोर्ट पर दो घंटे तक रोके रखा, क्योंकि मेरे नाम के साथ खान लगा है। जबकि वास्तविकता यह थी कि अमेरिका में ऎसी तलाशिया होती रहती हैं। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री आज़म खान भी इसका शिकार हो चुके हैं। खान ने इस घटना को अपने पीआर और मीडिया के दोस्तों के ज़रिये खूब भुनाया। कुछ इसी प्रकार का सुर्रा, इसी एयरपोर्ट पर पहुँच कर खान ने अप्रैल २०१० में फिर छोड़ा और खुद को बड़ा स्टार साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब इसे इत्तेफ़ाक़ तो नहीं ही कहा जायेगा। ध्यान दें तो शाहरुख़ खान किसी एक्टर या को स्टार के साथ ज़बरदस्ती झगड़ा मोल लेकर प्रचार जुटाते हैं। अपनी फिल्म 'जब तक हैं' जान को उन्होंने जानबूझ कर अजय देवगन की फिल्म 'सन ऑफ़ सरदार' के सामने ला खड़ा किया। यह विवाद कोर्ट तक पहुंचा। २०१३ को आउटलुक को दिया इंटरव्यू फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' को प्रचार दिलाने के मक़सद से ही दिया गया था। दिवाली २०१४ में शाहरुख़ खान की फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' रिलीज़ होनी थी। यह साल लोकसभा चुनाव का वर्ष था। बीजेपी को बढ़त साफ़ नज़र आ रही थी। नरेंद्र मोदी के खिलाफ सांप्रदायिक प्रचार धूर्तता की हद तक हो रहा था। ऐसे समय में शाहरुख़ खान ने भी बहती गंगा में हाथ धो लिया। खान का विवादित बयान सामने आया कि अगर नरेंद्र मोदी जीते तो मैं हिंदुस्तान छोड़ दूंगा। यह उनका अपनी फिल्म को प्रचार देने का शोशा इसलिए था कि खान ने न तो इसका खंडन किया, न ही वह देश छोड़ कर गए। इस बार भी खान की फिल्म 'दिलवाले' डेढ़ महीने बाद रिलीज़ होने वाली है। खान ने अपनी यह फिल्म भी संजय लीला भंसाली को छेड़ने के लिए पहले से तय फिल्म 'बाजीराव मस्तानी ' की रिलीज़ डेट को ही रिलीज़ करने की घोषणा कर दी। चूंकि, प्रचार के मामले में संजयलीला भंसाली काफी आगे निकल गए हैं, इसलिए शाहरुख़ खान ने फिर खुद के खान होने और देश में असहिष्णुता का राग अलाप दिया। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि मामला सिर्फ 'दिलवाले' को प्रचार दिलाने का नहीं, बल्कि ईडी की उन नोटिसों का भी है, जो उन्हें और उनकी पत्नी को आईपीएल के ज़रिये फेमा के उल्लंघन पर पूछताछ के लिए भेजी गई थी तथा जिसमे अगर खान फंस गए तो उन्हेंऔर उनकी बीवी को जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता। इसलिए सरकार पर दबाव और प्रचार का दोहरा लाभ पाने के लिए शाहरुख़ खान ने असहिष्णुता की घी भरी कड़ाही में अपनी उंगली या सर नहीं डाला बल्कि, खुद को पूरी तरह से डुबो दिया।



सोनाली बेंद्रे बतायेंगी कि कौन बेस्ट ड्रामेबाज़ !

कुछ समय पहले टीवी सीरियल 'अजीब दास्तान है यह' से टीवी दर्शकों के दिलों में जगह बनाने वाली सोनाली बेंद्रे अब पूरी तरह से टीवी शोज में रम गई लगती हैं।  तभी तो वह एक रियलिटी टीवी शो में फिर से ड्रामेबाज़ की खोज करती नज़र आयेंगी।  पोपुलर रियलिटी शो 'इंडियाज बेस्ट ड्रामेबाज़' के दूसरे सीजन में सोनाली बेन्द्र एक बार फिर बेस्ट ड्रामेबाज़ चुनने के लिए इस शो को जज करने जा रही है। इस शो में बच्चों के एक्टिंग टैलेंट को जांचा परखा जाता है उसमे से श्रेष्ठ को चुना जाता है।  इस शो के पिछले सीजन में श्रेष्ठ बाल प्रतिभाओं के प्रदर्शन ने सोनाली बेंद्रे को बहुत प्रभावित किया था।  वह कहती है, "अजीब दास्ताँ है ये' की शूटिंग में बेहद व्यस्त रहने के बाद मैं कुछ दिन आराम करना चाहती थी।  अपने बेटे रणवीर और परिवार को समय देना चाहती थी।  लेकिन, चूंकि यह ड्रामेबाज़ था, इसलिए मैंने इस जज करना मंज़ूर कर लिया।  वैसे रियलिटी शो मेरे लिए उपयुक्त है। क्योंकि, मुझे ऐसे शोज को शूट करने के लिए महीने में पांच या छः दिन ही देने होंगे। "
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फिर साथ साथ रजनीकांत और अमिताभ बच्चन !

दक्षिण में खबरे गर्म हैं कि २०१० की तमिल ब्लॉकबस्टर फिल्म 'एंधीरन' की सीक्वल फिल्म 'एंधिरन २' में रजनीकांत के साथ अमिताभ बच्चन नज़र आ सकते हैं।  शंकर द्वारा निर्देशित फिल्म 'एंधिरन' को हिंदी में 'रोबोट' शीर्षक के साथ रिलीज़ किया गया था। अब इसके सीक्वल पर काम किया जा रहा है। पिछले दिनों, यह खबर गर्म थी कि शंकर 'एंधिरन २' के मुख्य विलेन के लिए हॉलीवुड के एक्शन स्टार अर्नाल्ड श्वार्ज़नेगर को लेना चाहते हैं।  लेकिन, पता चला है कि अर्नाल्ड ने जो शर्ते रखी हैं उसे पूरी करना शंकर के वश की बात नहीं है। अर्नाल्ड ने 'एंधिरन २' का मुख्य विलेन बनने के लिए शर्त रखी है कि पहले फिल्म की स्क्रिप्ट को किसी हॉलीवुड स्क्रिप्ट राइटर से फिर लिखवाया जाये ।  उन्होंने फिल्म में काम करने की एवज में १०० करोड़ का पारिश्रमिक भी मांगा है।  ज़ाहिर है कि सुपर स्टार रजनीकांत को ध्यान में लिखी गई फिल्म की स्क्रिप्ट को अर्नाल्ड की शर्त के अनुसार बदला जाना संभव नहीं है।  एक सौ करोड़ का पारिश्रमिक तो बहुत बाद की बात है।  अर्नाल्ड के बाद अमिताभ बच्चन को फिल्म में लिए जाने की चर्चा भी ज़ोरों पर है। शंकर ने अमिताभ बच्चन से कांटेक्ट कर  फिल्म में काम करने का ऑफर किया।  बताते हैं कि अमिताभ बच्चन अपने अच्छे मित्र तथा अंधा कानून और गिरफ्तार जैसी  फिल्मों के को-स्टार रजनीकांत के साथ फिल्म करने के   इच्छुक भी हैं।  यहाँ याद दिला दें कि 'एंधिरन' में रजनीकांत की नायिका अमिताभ बच्चन की बहु ऐश्वर्या राय बच्चन थी।  लेकिन, 'एंधिरन २'  में ससुर-बहु टकराव नहीं होने जा रहा। क्योंकि, 'एंधिरन २' में रजनीकांत की नायिका एमी जैक्सन हैं। इस विज्ञानं फंतासी फिल्म के शुरू होने का ऐलान १२ दिसंबर को रजनीकांत के जन्मदिन पर क्या जायेगा।  इस फिल्म को ३ डी  तकनीक से बनाया जायेगा।  

एक थी अजूरी

भारतीय सिनेमा के शुरूआती यहूदी सितारों की परंपरा में अज़ूरी भी थी।  उनका पूरा नाम अन्ना मारिए गुएजलोर  था। वह बेंगलोर में १९०७ में पैदा हुई। वह हिंदी फिल्मों की नर्तकी अभिनेत्री थी। अज़ूरी ने बहुत फ़िल्में नहीं की।  वह ज़्यादा  फिल्मों की नायिका भी नहीं बनी। उन्होंने 'जजमेंट ऑफ़ अल्लाह', 'जवानी की हवा', 'चंद्रसेना', 'सुनहरा संसार', 'लग्न बंधन', 'भूकैलाश', 'नया संसार', शेख चिल्ली', तस्वीर', 'रतन', 'शाहजहाँ', 'परवाना', आदि १६ फिल्मों में बतौर नर्तकी अभिनेत्री किरदार किये।  वास्तविकता तो यह है कि अज़ूरी की पहचान भी हिंदी फिल्मों की नर्तकी अभिनेत्रियों के बतौर ही है।  हिंदी फिल्मों की  आइटम डांसर या कैबरे डांसर के बतौर हेलेन को याद किया  जाता है।  हेलेन कुकु की देन थी।  कुकु ने हिंदी फिल्म निर्माताओं का परिचय हेलेन से करवाया।  कुकु के हिंदी फिल्मों में नृत्य गीत फिल्मों को हिट बनाने की गारंटी हुआ करते थे।  लेकिन, कुकु भी हिंदी फिल्मों की पहली डांसर अभिनेत्री नहीं थी। फिल्मों को आवाज़ मिलने के बाद, हिंदी फिल्मों की पहली डांसर अज़ूरी थी।  तीस और चालीस के दशक में अज़ूरी की तूती बोला करती थी। सच कहा जाए तो भारतीय और पाकिस्तानी फिल्मों में अज़ूरी ने अपने नृत्यों को इतना पॉपुलर बनाया कि फिल्मों में अज़ूरी का डांस होना ज़रूरी हो गया था । उनकी पहली फिल्म 'नादिरा' १९३४ में रिलीज़ हुई थी।  अज़ूरी की माँ हिन्दू ब्राह्मण थी और पिता एक जर्मन यहूदी  डॉक्टर ।  अज़ूरी ने एक मुसलमान से शादी की थी।  देश के बंटवारे के बाद अज़ूरी पाकिस्तान नहीं गईं।  लेकिन, १९६० में वह पाकिस्तान चली गई। अलबत्ता, उनकी दो बहने भारत में ही रह गई।  उन्होंने पाकिस्तान में भी झूमर जैसी फिल्मों में अभिनय किया।  उनकी आखिरी भारतीय फिल्म बहना थी, जो १९६० में रिलीज़ हुई।  अज़ूरी की मृत्यु १९९८ में ९० साल की उम्र में हुई।  अज़ूरी की बदौलत हिंदी फिल्मों में डांसर अभिनेत्रियों का जन्म हुआ।  कुकु, हेलेन, सीमा वाज, शशिकला, बिंदु, आदि के लिए हिंदी फिल्मों की राह खोलने वाली अज़ूरी ही थी।  कुकु तो अज़ूरी के डांस से काफी प्रेरित थी।  

सीले हुए पटाखों से निकला 'असहिष्णुता' का धुंवा !

हिन्दुओं की असहिष्णुता को लेकर अपने अवार्ड लौटने वाले फिल्मकारों की हकीकत-
आनंद पटवर्धन को डाक्यूमेंट्री 'जय भीम कामरेड' बनाने में १४ साल लगे. यह डाक्यूमेंट्री २०११ में दिखाई गई. इसके बाद से सन्नाटा है.
कुंदन शाह की फुल लेंग्थ फिल्म 'एक से बढ़ कर एक' २००४ में रिलीज़ हुई. इसके १० साल बाद उनकी एक वैश्या के प्रधान मंत्री बनने के कथानक पर घटिया फिल्म 'पी से पीएम तक' २०१४ में रिलीज़ हुई. इस फिल्म से बेहतर तो मलिका शेरावत की फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' ज्यादा बेहतर  थी .इस कथित इन्टेलेक्ट की यह फिल्म शायद खुद उनके, समीक्षकों और उनके दोस्तों के अलावा किसी ने भी नहीं देखी.
कुंदन शाह के दोस्त सईद अख्तर मिर्ज़ा तो १९९५ में 'नसीम' बनाने के बाद सन्नाटे में आ गए. बीस साल में वह केवल एक फिल्म 'एक ठो चांस' ही बना सके, जिसे एक ठो दर्शक ने भी नहीं देखा.
उपरोक्त से ज़ाहिर है कि उपरोक्त फिल्मकार विदेशी शोहरत के सहारे अभी टिके हुए हैं और जिनकी प्रतिभा का सूखा तो दसियों साल से पडा हुआ है. यह तो सहिष्णु माहौल में तक एक्को फिल्म न बना सके. वह अब इसके अलावा और कर ही क्या सकते हैं!
कुछ फिल्मकार जो सक्रिय हैं, उनके हकीकत पढ़िए-
खोसला का घोसला की फ्लूक कामयाबी के सहारे इन्टेलेक्ट बने दिबाकर बनर्जी ने लव सेक्स एंड धोखा जैसे गटर में गोता लगाया. शंघाई और डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी जैसी टोटल वाशआउट फ़िल्में बनाई. इधर उनकी 'तितली' रिलीज़ होने वाली थी. इसे प्रचार दिलाने के लिए उन्होंने वह पुरस्कार लौटा दिया, जो उनका था नहीं. खोसला का घोसला के निर्माता दिबाकर नहीं थे तो वह यह पुरस्कार कैसे लौटा सकते थे. यह धोखाधड़ी का मामला ही तो है.